"भक्तिकाल के कवि": अवतरणों में अंतर

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== मीराबाई ==
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ये मेड़तिया के [[राठौड़]] रत्नसिंह की पुत्री, राव दूदाजी की पौत्री और जोधपुर के बसानेवाले प्रसिद्ध [[राव जोधा]] की प्रपौत्री थीं। इनका जन्म सन् 1498 ई. में चोकड़ीकुड़की नाम के एक गाँव में हुआ था और विवाह [[उदयपुर]] के महाराणा कुमार [[भोजराज (चित्तौड़गढ़)|भोजराज]] के साथ हुआ था। ये आरंभ से ही कृष्ण भक्ति में लीन रहा करती थी। विवाह के उपरांत थोड़े दिनों में इनके पति का परलोकवास हो गया। ये प्राय: मंदिर में जाकर उपस्थित भक्तों और संतों के बीच श्रीकृष्ण [[भगवान]] की मूर्ती के सामने आनंदमग्न होकर नाचती और गाती थी। कहते हैं कि इनके इस राजकुलविरूद्ध आचरण से इनके स्वजन लोकनिंदा के भय से रूष्ट रहा करते थे। यहाँ तक कहा जाता है कि इन्हें कई बार विष देने का प्रयत्न किया गया, पर विष का कोई प्रभाव इन पर न हुआ। घरवालों के व्यवहार से खिन्न होकर ये द्वारका और वृंदावन के मंदिरों में घूम-घूमकर भजन सुनाया करती थीं। ऐसा प्रसिद्ध है कि घरवालों से तंग आकर इन्होंने गोस्वामी [[तुलसीदास]] को यह पद लिखकर भेजा था: स्वस्ति श्री तुलसी कुल भूषन दूषन हरन गोसाईं I बारहिं बार प्रनाम करहुँ, अब हरहु सोक समुदाई II घर के स्वजन हमारे जेते सबन्ह उपाधि बढ़ाई II साधु संग अरू भजन करत मोहिं देत कलेस महाई II मेरे मात पिता के सम हौ, हरिभक्तन्ह सुखदाई II हमको कहा उचित करिबो है, सो लिखिए समझाई II इस पर गोस्वामी जी ने ‘विनयपत्रिका’ का यह पद लिखकर भेजा था : जाके प्रिय न राम बैदेही I सो नर तजिय कोटि बैरी सम जद्यपि परम सनेही II नाते सबै राम के मनियत सुहृद सुसेव्य जहाँ लौं I अंजन कहा आँखि जौ फूटै, बहुतक कहौं कहाँ लौं II मीराबाई की मृत्यु द्वारका में सन् 1546 ई. में हो चुकी थी। अत: यह जनश्रुति किसी की कल्पना के आधार पर ही चल पड़ी. मीराबाई का नाम प्रधान भक्तों में है और इनका गुणगान नाभाजी, ध्रुवदास, व्यास जी, मलूकदास आदि सब भक्तों ने किया है।
;कृतियाँ
* 1. नरसी जी का मायरा