"मंगल पांडे": अवतरणों में अंतर

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|name=मंगल पाण्डेय
|image=Mangal pandey gimp.jpg
|birth_date=30 janजनवरी 1831<ref name="brit">{{cite web |url=http://www.britannica.com/EBchecked/topic/1978989/Mangal-Pandey |title=Mangal Pandey: Indian soldier |first=Shanthie Mariet |last=D'Souza |work=Encyclopædia Britannica |access-date=27 दिसंबर 2017 |archive-url=https://web.archive.org/web/20141227143717/http://www.britannica.com/EBchecked/topic/1978989/Mangal-Pandey |archive-date=27 दिसंबर 2014 |url-status=live }}</ref>
|death_date=8अप्रैल 1857
|birth_place=बलिया, [[नगवां गांव]], [[भारत]]
|death_place=[[बैरकपुर]], भारत
|religion=हिन्दू (ब्राह्मण)
|occupation=बैरकपुर छावनी में बंगाल नेटिव इन्फैण्ट्री की 19वीं रेजीमेण्ट में सिपाही
|known =[[भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन|भारतीय स्वतन्त्रता सेनानी]]
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=='''जीवन परिचय'''==
मंगल पाण्डेय का जन्म [[भारत]] में [[उत्तर प्रदेश]] के बलिया जिले के नगवां नामक गांव में 30 JANजनवरी 1831 को एक "ब्राह्मण" परिवार में हुआ था।<ref name="brit"/> इनके पिता का नाम सुदिष्ट पांडेय तथा माता का नाम जानकी देवी था। मंगल पाण्डेय, गिरिवर पांडेय एवं ललित पांडेय तीन भाई थे। छोटे भाइयों की संतानों में महावीर पांडेय एवं महादेव पांडेय हुए। जिसमें महावीर पांडेय के एक मात्र पुत्र बरमेश्वर पांडेय ने १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन में बलिया को आजाद करा कर स्वयं कप्तान बन गए थे। मंगल पाण्डेय ब्रह्मचारी "ब्राह्मण" होने के बाद भी ब्रिटिश [[ईस्ट इण्डिया कम्पनी|ईस्ट इंडिया कंपनी]] की सेना में शामिल हो गए। इस प्रकार पूरा खानदान राष्ट्र की सेवा में लगा रहा।
 
=== '''1857 का विद्रोह''' ===
विद्रोह का प्रारम्भ एक बंदूक की वजह से हुआ। सिपाहियों को पैटऱ्न १८५३ एनफ़ील्ड बंदूक दी गयीं जो कि ०.५७७ कैलीबर की बंदूक थी तथा पुरानी और कई दशकों से उपयोग में लायी जा रही ब्राउन बैस के मुकाबले में शक्तिशाली और अचूक थी। नयी बंदूक में गोली दागने की आधुनिक प्रणाली (प्रिकशन कैप) का प्रयोग किया गया था परन्तु बंदूक में गोली भरने की प्रक्रिया पुरानी थी। नयी एनफ़ील्ड बंदूक भरने के लिये कारतूस को दांतों से काट कर खोलना पड़ता था और उसमे भरे हुए बारुद को बंदूक की नली में भर कर कारतूस को डालना पड़ता था। कारतूस का बाहरी आवरण में चर्बी होती थी जो कि उसे पानी की सीलन से बचाती थी। सिपाहियों के बीच अफ़वाह फ़ैल चुकी थी कि कारतूस में लगी हुई चर्बी सुअर और गाय के मांस से बनायी जाती है।
 
२९ मार्च १८५७ को बैरकपुर परेड मैदान कलकत्ता के निकट मंगल पाण्डेय जो नगवा, बलिया(उत्तर प्रदेश) के रहने वाले थे रेजीमेण्ट के अफ़सर लेफ़्टीनेण्ट बाग पर हमला कर के उसे घायल कर दिया। जनरल जान हेएरसेये के अनुसार मंगल पाण्डेय किसी प्रकार के धार्मिक पागलपन में थे जनरल ने जमादार ईश्वरी प्रसाद ने मंगल पांडेय को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया पर ज़मीदार ने मना कर दिया। सिवाय एक सिपाही शेख पलटु को छोड़ कर सारी रेजीमेण्ट ने मंगल पाण्डेय को गिरफ़्तार करने से मना कर दिया। मंगल पाण्डेय ने अपने साथियों को खुलेआम विद्रोह करने के लिये कहा पर किसी के ना मानने पर उन्होने अपनी बंदूक से अपनी प्राण लेने का प्रयास किया। परन्तु वे इस प्रयास में केवल घायल हुये। ६ अप्रैल १८५७ को मंगल पाण्डेय का कोर्ट मार्शल कर दिया गया और ८ अप्रैल १८५७ को २६ वर्ष २ माह ९ दिन की अवस्था में फ़ांसी दे दी गयी।
 
== विद्रोह का परिणाम ==