"मन्दिर": अवतरणों में अंतर

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मन्दिरों का अस्तित्व और उनकी भव्यता [[गुप्त राजवंश]] के समय से देखने को मिलती है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि गुप्त काल से हिन्दू मंदिरों का महत्त्व और उनके आकार में उल्लेखनीय विस्तार हुआ तथा उनकी बनावट पर स्थानीय वास्तुकला का विशेष प्रभाव पड़ा। उत्तरी भारत में हिन्दू मंदिरों की उत्कृष्टता उड़ीसा तथा उत्तरी मध्यप्रदेश के खजुराहो में देखने को मिलती है। उड़ीसा के भुवनेश्वर में सिथत लगभग 1000 वर्ष पुराना लिंगराजा का मन्दिर वास्तुकला का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है। हालांकि, 13वीं शताब्दी में निर्मित [[कोणार्क]] का [[सूर्य मंदिर]] इस क्षेत्र का सबसे बड़ा और विश्वविख्यात मंदिर है। इसका शिखर इसके आरंम्भिक दिनों में ही टूट गया था और आज केवल प्रार्थना स्थल ही शेष बचा है। काल और वास्तु के दृष्टिकोण से [[खजुराहो]] के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मन्दिर 11वीं शताब्दी में बनाये गये थे। गुजरात और राजस्थान में भी वास्तु के स्वतन्त्र शैली वाले अच्छे मन्दिरों का निर्माण हुआ किन्तु उनके अवशेष उड़ीसा और खजुराहो की अपेक्षा कम आकर्षक हैं। प्रथम दशाब्दी के अन्त में वास्तु की दक्षिण भारतीय शैली [[तंजावुर|तंजौर]] (प्राचीन नाम तंजावुर) के [[राजराजेश्वर मंदिर]] के निर्माण के समय अपने चरम पर पहुंच गयी थी।
 
'''[https://web.archive.org/web/20200720123358/https://www.domkawla.com/tortoise-in-temple/ हर मंदिर मे के प्रारंभ मे कछुआ क्यो होता है ?]'''
 
== इन्हें भी देखें ==