"द्रविड़ प्रजाति": अवतरणों में अंतर

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वैदिक इंडेक्स के लेखक इन मंत्रो के गलत अर्थ को करके भ्रान्ति उत्पन्न कर रहे हैं की दस्यु लोग लिंग पूजा करते हैं एवं आर्य लोग उनसे विभिन्न पूजा पद्यति को मानने वाले हैं। सत्य अर्थ यह हैं की दस्यु शब्द किसी वर्ग या जाति विशेष का नाम नहीं हैं बल्कि जो भी व्यक्ति दुर्गुण युक्त हैं। वह दस्यु है और दुर्गुणी व्यक्ति किसी भी समुदाय में हो दूर करने योग्य है। वेद मन्त्रों के गलत अर्थ दिखाकर को भिन्न भिन्न जातियों के रूप में चित्रित करने का प्रयास किया गया है। जिससे परस्पर अंतर्विरोध एवं द्वेष भावना को बल मिले।
 
==आर्य-दस्यु युद्ध पर स्वामी दयानंद के क्या दृष्टिकोण है?==
 
स्वामी दयानंद आर्यों के बाहर से आने एवं स्थानियों को युद्ध में परास्त करने का स्पष्ट खंडन करते है। स्वामी जी सत्यार्थ प्रकाश में लिखते हैं-
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आर्य और दस्यु के मध्य संबंधों पर स्वामी दयानंद द्वारा विशेष व्याख्या करी गई है। स्वामी जी ऋग्वेद 10/64/11 मंत्र की व्याख्या करते हुए लिखते है-
 
हे यथायोग्य सबको जाननेवाले ईश्वर! आप ‘आर्यान्’ विद्या-धर्म आदि उत्कृष्ट स्वभाव आचरण युक्त आर्यों को जानो ‘ये च दस्यव:’ और जो नास्तिक, डाकू, चोर, विश्वासघाती, मुर्ख, विषय-लम्पट, हिंसा आदि दोषयुक्त, उत्तम कर्मों में विघ्न करनेवाले,स्वार्थी, स्वार्थ-साधन में तत्पर, वेद-विद्या-विरोधी अनार्य मनुष्य ‘बहिर्ष्मते’ सर्वोपकारक यज्ञ के विध्वंशक हैं। इन सब दुष्टों को आप (रन्धय) समुलान् विनाशय- मूलसहित नष्ट कर दीजिये। और (शासद व्रतान्) ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास आदि धर्मानुष्ठान व्रतरहित, वेदमार्ग उच्छेदक अनाचारियों को यथायोग्य शासन कीजिये (शीघ्र उन पर दंड- निपातन करो)जिससे वे भी शिक्षायुक्त हो के शिष्ट हों अथवा उनका प्राणान्त हो जाय,किं वा हमारे वश में ही रहे (शाकी) तथा जीव को परम शक्तियुक्त,शक्ति देने और उत्तम कामों में प्रेरणा करनेवाले हों। आप हमारे दुष्ट कामों के विरोधक हो। मैं उत्कृष्ट स्थानों में निवास करता हुआ तुम्हारी अज्ञानुकूल सब उत्तम कर्मों की कामना करता हूंसो आप पूरी करें[xxxvii]।
 
स्वामी दयानंद भी आर्य-दस्यु शब्दों को गुणात्मक मानते हैं न की किसी विशेष समूह अथवा जाति के आधार पर मानते हैं।
 
योगी अरविन्द भी स्वामी दयानंद के समान आर्य शब्द को गुणात्मक मानते है।
योगी अरविन्द भी स्वामी दयानंद के समान आर्य शब्द को गुणात्मक मानते है। अरविन्द जी के अनुसार आर्य शब्द में उदारता,नम्रता, श्रेष्ठता, सरलता, साहस, पवित्रता, दया, निर्बल संरक्षण, ज्ञान के लिए उत्सुकता, सामाजिक कर्तव्य पालनादि सब उत्तम गुणों का समावेश हो जाता है। मानवीय भाषा में इससे अधिक उत्तम और कोई शब्द नहीं। आर्य आत्मसंयमी और आंतरिक तथा बाह्य स्वराज्य -प्रेमी होता है। वह अज्ञान, बंधन तथा किसी प्रकार की दासता में रहना पसंद नहीं करता। उसकी इच्छा शक्ति दृढ़ होती है। प्रत्येक वस्तु में वह सत्य, उच्चता तथा स्वतंत्रता की खोज करता है। आर्य एक कार्यकर्ता और योद्धा होता है जो अपने अंदर और जगत में ईश्वर के राज्य को लाने के लिए अज्ञान, अन्याय तथा अत्याचारादि के विरुद्ध युद्ध करता है[xxxviii]।
 
==क्या वेदों में आर्य-द्रविड़ युद्ध का वर्णन मिलता है?==
 
वैदिक इंडेक्स आदि के लेखको ने यह भी सिद्ध करने का प्रयास किया हैं की वेद में आर्य और दस्युओ के युद्ध का वर्णन हैं। वेद में दासों के साथ युद्ध करने का वर्णन तो मिलता है पर यह मानवीय नहीं अपितु प्राकृतिक युद्ध हैं। जैसे इन्द्र और वृत्र का युद्ध। इन्द्र बिजली का नाम हैं जबकि वृत्र मेघ का नाम है। इन दोनों का परस्पर संघर्ष प्राकृतिक युद्ध के जैसा हैं। यास्काचार्य ने भी निरुक्त 2/16 में इन्द्र-वृत्र युद्ध को प्राकृतिक माना है। इसलिए वेद में जिन भी स्थलों पर आर्य-दस्यु युद्ध की कल्पना की गई है उन स्थलों को प्रकृति में होने वाली क्रियाओ को उपमा अलंकार से दर्शित किया गया हैं। उनके वास्तविक अर्थ को न समझ कर अज्ञानता से अथवा जान कर वेदों को बदनाम करने के लिए एवं आर्य द्रविड़ के विभाजन की निति को पोषित करने के लिए युद्ध की परिकल्पना कई गयी हैं जो की गलत हैं।
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डॉ अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक शूद्र कौन?[xxxix] में स्पष्ट रूप से विदेशी लेखकों की आर्यों के बाहर से आकर यहाँ पर बसने सम्बंधित मान्यता का स्पष्ट खंडन किया हैं। डॉ अम्बेडकर लिखते है-
 
वेद में ऐसा कोई प्रसंग उल्लेख नहीं है जिससे यह सिद्ध हो सके कि आर्यों ने भारत पर आक्रमण कर यहाँ के मूलनिवासी दासो-दस्युओं को विजय किया।
आर्य, दास और दस्यु जातियों के अलगाव को सिद्ध करने के लिये कोई साक्ष्य वेदों में उपलब्ध नहीं है।
वेदों में इस मत की पुष्टि नहीं की की गई की गयी कि आर्य, दासों और दस्युओं से भिन्न रंग थे।
डॉ अम्बेडकर ने स्पष्ट रूप से स्वामी दयानंद की मान्यता का अनुमोदन किया है। वे न तो आर्य शब्द को जातिसूचक मानते थे अपितु गुणवाचक ही मानते थे। इसी सन्दर्भ में उन्होंने शूद्र शब्द को इसी पुस्तक के पृष्ठ 80 पर “आर्य” ही माना है। वे किसी भी आर्यों के बाहरी आक्रमण का स्पष्ट खंडन करते हैं। न ही आर्य और दास को अलग मानते हैं। रंग, बनावट आदि के आधार पर आर्यों-दस्युओं में भेद को स्पष्ट ख़ारिज करते हैं।
[i] The Aryan invaders or immigrants found in India to groups of people, one of which they named the Dasas and Dasyu, and the other Nishadas. Vedic Age p.156 अर्थात आर्य आक्रान्ताओं ने भारत में दो प्रकार के वर्गों को पाया। एक वर्ग को उन्होंने दास और दस्यु का नाम दिया और दूसरे को निषादों का।
 
[ii] ऋग्वेद 10/64/11
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[xxviii] ऋग्वेद 7/5/6
 
[xxix] ऋग्वेद 10/22/8
 
[xxx] ऋग्वेद 1/59/6