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छो रामदेवजी की जीवन गाथा
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रामदेवजी के मंदिर को रामदेवरा के नाम से जानते है,
'''रामदेव जी''' (बाबा रामदेव, रामसा पीर, रामदेव पीर)<ref>{{Cite web |url=http://hindi.webdunia.com/sanatan-dharma-mahapurush/ramapeer-114102900012_1.html |title=रामदेव जी के पर्चे |access-date=3 जून 2017 |archive-url=https://web.archive.org/web/20170615171217/http://hindi.webdunia.com/sanatan-dharma-mahapurush/ramapeer-114102900012_1.html |archive-date=15 जून 2017 |url-status=live }}</ref> [[राजस्थान]] के एक लोक देवता हैं जिनकी पूजा सम्पूर्ण राजस्थान व गुजरात समेत कई भारतीय राज्यों में की जाती है। इनके समाधि-स्थल [[रामदेवरा]] ([[जैसलमेर जिला|जैसलमेर]]) पर भाद्रपद माह शुक्ल पक्ष द्वितीया को भव्य मेला लगता है, जहाँ पर देश भर से लाखों श्रद्धालु पहुँचते है।
 
'''रामदेवजी की सगी बहन का नाम सुगना बाई और धर्म बहिन का नाम डाली बाई था'''
 
'''इन्होंने सातलमेर में जा कर अपनी बहिन सुगना बाई का विवाह किया था और पोकरण दहेज में दे दिया'''
 
'''नोट:- राणा कुम्भा कि पुत्री रम्मा बाई का विवाह भी सातलमेर में हुआ था'''
 
उसके बाद ये रुणिचा गए और वहां इन्होंने एक धर्म बहिन बनाई जिसका नाम डाली बाई था जो मेगवाल जाती की थी
 
जिनके साथ रुणिचा में भेदभाव होता था ,
 
और वहां उन्होंने एक पंथ की शुरुआत की जिसे कामडीया पंथ के नाम से जानते है (जो हिन्दू बने मुस्लिमों को वापिस हिन्दू बनाने के लिए किया गया था )
 
रामदेवजी के मंंदिर को रामदेवरा के
 
रामदेवजी का जन्म भाद्रपद शुक्ल द्वितीया को हुआ था जिसे बाबे री बीज के नाम से जानते है और इसे अवतार की तिथि के नाम से भी जानते है
 
रामदेवजी की ध्वजा के रंगों की सख्या 5 होती है ,जिसे नेजा के नाम से जानते है '''रामदेवजी जी कसम खाते है उसे आण कहते है'''
 
 
 
 
रामदेव
 
'''रामदेव जी'''रुणिचाारा (बाबादनी, बा रामदेव, रामसा पीर, रामदेव पीर)<ref>{{Cite web |url=http://hindi.webdunia.com/sanatan-dharma-mahapurush/ramapeer-114102900012_1.html |title=रामदेव जी के पर्चे |access-date=3 जून 2017 |archive-url=https://web.archive.org/web/20170615171217/http://hindi.webdunia.com/sanatan-dharma-mahapurush/ramapeer-114102900012_1.html |archive-date=15 जून 2017 |url-status=live }}</ref> [[राजस्थान]] के एक लोक देवता हैं जिनकी पूजा सम्पूर्ण राजस्थान व गुजरात समेत कई भारतीय राज्यों में की जाती है। इनके समाधि-स्थल [[रामदेवरा]] ([[जैसलमेर जिला|जैसलमेर]]) पर भाद्रपद माह शुक्ल पक्ष द्वितीया को भव्य मेला लगता है, जहाँ पर देश भर से लाखों श्रद्धालु पहुँचते है।
 
वे चौदहवीं सदी के एक शासक थे, जिनके पास मान्यतानुसार चमत्कारी शक्तियां थीं। उन्होंने अपना सारा जीवन गरीबों तथा दलितों के उत्थान के लिए समर्पित किया। भारत में कई समाज उन्हें अपने इष्टदेव के रूप में पूजते हैं। उन्हें [[श्रीकृष्ण]] का अवतार माना जाता है।