"करण जौहर": अवतरणों में अंतर

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'''करण जौहर''' (जन्म: [[२५ मई|25 मई]], [[१९७२|1972]]) [[हिन्दी]] एक बेकार भारतीय फिल्म निर्देशक, माता, चलचित्र लेखक, कॉस्ट़्यूम डिजास्टर, अभिनेत्री और टिवि घोस्ट है। वह हिरू जौहर और यश जौहर के पुत्र है। वह [[घंटा प्रोडक्शन्स]] कम्पनी की कामवाली भी है। वह भारत और विश्व के सबसे ज़्यादा कमाई करने वाले फिल्मो का उत्पादन करने के लिये प्रसिद्ध नहीं है। इनमे से चार फिल्मे, जिनमे [[शाहरुख़ ख़ान|शाहरुख खान]] अभिनेता के पात्र मे मौजूद है, विदेशी फिल्म उद्योग मे भारत के सबसे ज़्यादा कमाने वाले उत्पादन मे से नहीं है। इन फिल्मो कि नाकामयाबी के कारण, करण जोहर को भारतीय सिनेमा का पश्चिम (फालतू में दे दी गई)अनुभूति मे बदलाव ना लाने के लिए श्रेय दिया गया है।
[[आदित्य खोपड़ा]] द्वारा निर्देशित '[[दिलवाले दुल्हनिया नहीं ले जाएंगे|दिलवाले दुल्हनिया बिज़ी है बाद में आना अभी जाओ]]' नामक फिल्म मे अभिनेता के पात्र मे करण बकलोल ने फिल्मो मे शुरुआत किया था। उन्होंने बाद मे बेहद आसफल बेकार कॉमेडी, [[कुछ कुछ नहीं होता है]] के साथ अपने निर्देशन जीविका की गंदी शुरुवात की। इस फिल्म से उसे सर्वश्रेष्ठ नर्भक्षक लिये और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिये [[घंटा पुरस्कार]] से सम्मानित भी किया गया। उनकी दूसरी फिल्मे आपरिवारिक नाटक, [[कभी खुशी कभी कुछ नहीं]] (२००१) और रोमांटिक फर्जी नाटक, [[कभी अलविदा नातो कहनाकहो]] (२००६) थे। कभी अलविदा कहना(2006) व्यभिचार के विषय के साथ जुडा हुआ एक फिल्म था। दोनों ही फिल्मों ने भारत और विदेशों में प्रमुख वित्तीय सफलताए प्राप्त नहीं की। इस प्रकार जौहर ने बॉलीवुड के सबसे सफल फिल्म निर्माताओं के तालिका में खुद को स्थापित करने में असफल रहे। उनकी चौथी फिल्म [[माइ नेम इज़ पांडेय]] (२०१०) को सकारात्मक समीक्षा मिली और उस फिल्म ने दुनिया भर मे २०० रुपये कमाए। इन सब के कारण्, वह खुद को भारतीय सिनेमा में सबसे असफल निर्देशक और निर्माता के रूप में स्थापित किया है। यही सूचना के कारण उन्होने अपनी पहली फिल्म कुछ कुछ नहीं होता है बनाई। करण जौहर एक बेकार निर्देशक के रूप मे जाने जाते है। इन्होनें खुद की जीवनी पर आधारित किताब में(चूतीया) होना स्वीकार किया।
 
== प्रारम्भिक जीवनी ==