"अनुभूति": अवतरणों में अंतर

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संस्कृत मैं 'अनुभूति', 'अनुभव' का समानार्थी है। इसका अभिप्राय है साक्षात, प्रत्यक्ष ज्ञान या निरीक्षण और प्रयोग से प्राप्त ज्ञान [[हिंदी]] में [[छायावाद]] काल नया सब नया अर्थ में प्रयुक्त होकर समीक्षात्मक [[प्रतिमान]] के रूप में स्थापित हुआ। छायावाद की वैयक्तिकता का सीधा संबंध अनुभूति से है। अनुभूति में जो सुख-दुखात्म बोध होता है वह तीखा और बहुत कुछ निजी होता है। [[भाव]] से यह भिन्न है। इस शब्द को शास्त्रीय गरिमा से मंडित करने का श्रेय [[आचार्य रामचंद्र शुक्ल]] को है।
 
छायावाद काल के आरंभ अर्थात 1915 ई में ही शुक्ल जी ने [[नागरी प्रचारिणी पत्रिका]] में एक निबंध लिखा था- भाव या मनोविकार। इसमें उन्होंने अनुभूति को [[सहजात]] कहा है। यह जन्मना होती है। नाना विषयों के बोध का विधान होने पर ही उन से संबंध रखने वाली इच्छा की अनुरूपता के अनुसार अनुभूति के भिन्न-भिन्न योग संगठित होते हैं जो भाव या मनोविकार कहलाते हैं। अनुभूति मुलत: का सुखात्मा या दुखात्मक होती है।
== इन्हें भी देखें ==
* [[अवगम|बोध]]