"अनुभूति": अवतरणों में अंतर

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छायावाद काल के आरंभ अर्थात 1915 ई में ही शुक्ल जी ने [[नागरी प्रचारिणी पत्रिका]] में एक निबंध लिखा था- भाव या मनोविकार। इसमें उन्होंने अनुभूति को [[सहजात]] कहा है। यह जन्मना होती है। नाना विषयों के बोध का विधान होने पर ही उन से संबंध रखने वाली इच्छा की अनुरूपता के अनुसार अनुभूति के भिन्न-भिन्न योग संगठित होते हैं जो भाव या मनोविकार कहलाते हैं। अनुभूति मुलत: का सुखात्मा या दुखात्मक होती है।<ref>
https://archive.org/download/in.ernet.dli.2015.539047/2015.539047.Chintamani-Bhag.pdf</ref> अचार्य शुक्ल [[रति]], [[उत्साह]] आदि को [[मन]] की सुखात्मक अनुभूति और [[क्रोध]], [[भय]], [[शोक]] आदि विकारों को मन की दुखात्मक अनुभूति के रूप में स्वीकार करते हैं।
https://archive.org/download/in.ernet.dli.2015.539047/2015.539047.Chintamani-Bhag.pdf</ref>
== इन्हें भी देखें ==
* [[अवगम|बोध]]