"अनुभूति": अवतरणों में अंतर

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जहां तक [[कविता]] का संबंध है इस क्षेत्र में अनुभूति शब्द का व्यापक प्रयोग किया जाता है भावानुभूति, रसानुभूति, लौकिक अनुभूति, अलौकिक अनुभूति, प्रत्यक्षानुभूति, समानानुभूति, रहस्यानुभूति, काव्यानुभूति आदि अनेक रूपों में इसका प्रयोग मिलता है। [[क्रोचे]] तो अनुभूति को शरीर के योगक्षेम से संबंधित भीतरी क्रिया मानते हैं इसलिए इसे सुखदायक-दुखदायक, उपयोगी-अनुपयोगी, लाभकारी-हानिकारी दो पशुओं को आवश्यक माना जाता है। "सौंदर्यानुभूति" का अभिप्राय स्पष्ट करते हुए शुक्ल जी कहते हैं कि जब किसी वस्तु के रूप रंग की भावना में डूबकर हम अपनी अंता सत्ता को भूलकर तादाकार हो जाते हैं तो इसी को "सौंदर्यानुभूति" कहते हैं। अंतःसत्ता की "तादाकार परिणीति" ही [[सौंदर्यानुभूति]] है।<ref>चिंतामणि भाग १,२; आचार्य रामचंद्र शुक्ल</ref>
 
[[जयशंकर प्रसाद]] के लेख 'काव्यकला' में अनुभूति का अर्थ 'आत्मानुभूति' माना गया है जो चिन्मयी धारा से जुड़कर किंचित [[रहस्यमय|रहस्यमयी]] हो जाती है।<ref>काव्य कला और अन्य निबंध, [[जयशंकर प्रसाद]]</ref>
== इन्हें भी देखें ==
* [[अवगम|बोध]]