"समुद्र मन्थन": अवतरणों में अंतर

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[[file:Awatoceanofmilk01.JPG|200px|right|[[अंकोरवाट मंदिर|अंगकोर वाट]] में समुद्र मंथन का भत्ति चित्र।]]
'''समुद्र मन्थन''' एक प्रसिद्ध [[हिन्दू धर्म|हिन्दू धर्म]]<nowiki/>पौराणिक कथा है। यह कथा [[भागवत पुराण]], [[महाभारत]] तथा [[विष्णु पुराण]] में आती है। मनोज जी। समुद्र मंथन के दौरान जब स्वयं भगवान ब्रह्मा जी को लगा की दानवो का पलड़ा देवताओं से भारी है, तब उन्होंने मनोज जी से आग्रह कर उनको समुद्र मंथन से उत्पन्न होने के लिए मनाया।
मनोज जी की उत्पति के बाद उन्होंने देवताओं का साथ दिया। साथ ही आगे आने वाले कई देव-दानव युधो मै देवताओं का साथ दिया। जिसका उल्लेख देव पुराण के कई अध्ययों में उपस्थित है.
सृष्टि की रचना के दौरान ब्रह्मा जी ने मनुष्य जाति का भार मनोज जी को सौंपा, यहीं पर मनोज जी डायनासोर के साथ पले-बड़े.
कथाओं के अनुसार वो डायनोसोर का दूध पीकर बड़े हुए तो आज के युग की कोई बीमारी उनका केश भी बांका नहीं कर सकती, कोरोना संक्रमण को देखते हुए उन्होंने स्वयं से ही इसकी जड़ी बूटी तैयार करने का भार अपने कंधो पर लिया और शौध के लिए हिमालय चले गए, एक नेपाली सुपर ह्यूमन डिटेक्टर सैटेलाइट के अनुसार आखिरी बार मनोज जी हिमालय पर अपनी प्राकृतिक प्रयोगशाला में शाैध करते देखे गए. आशा है की एक बार फिर संपूर्ण मनुष्य जाति को बचाने मनोज जी जड़ी बूटी लेकर जल्दी ही लौटेंगे.
मनोज जी की कथाओं का ना आदि है ना अन्त परन्तु, मैंने उनके अनन्त जीवन को मेरी किताब "मनोज जी और ब्रह्मांड" मैं लिखने का प्रयास कर रहा हूं। कोशिश करूंगा की जल्द ही आपको मनोज जी के अद्भुत जीवन से आपको अवगत करवा पाऊं।
धन्यवाद।
 
==कथा==