"आइसक्रीम": अवतरणों में अंतर

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विदेशों में अरारोट के बदले साधारणत: [[जिलेटिन]] का उपयोग किया जाता है। इसका उद्देश्य होता है कि दूध के पानी से बर्फ के रवे न बन जाएं और मथने के कारण क्रीम से मक्खन अलग न हो जाए (यदि आइसक्रीम को जमाते समय खूब मथा जाए तो वह पर्याप्त वायुमय न बन पाएगी और इसलिए स्वादिष्ट न होगी)। जमाने के पहले मिश्रण को आधे घंटे तक 155 डिग्री फारेनहाइट ताप तक गरम करके तुरंत खूब ठंडा किया जाता है जिससे रोग के जीवाणु मर जाएँ। इस क्रिया को पैस्टयुराइज़ेशन कहते हैं। मिश्रण को बहुत बारीक छेद की चलनी में डालकर और बहुत अधिक दबाव का प्रयोग करके (लगभग 2,500 पाउंड प्रति वर्ग इंच का) छाना जाता है। इससे दूध में चिकनाई के कण बहुत छोटे (प्राकृतिक नाप के अष्टमांश) हो जाते हैं। इससे आइसक्रीम अधिक चिकनी और स्वादिष्ट बनती है।
 
जमानेवाली मशीन से निकलने के बाद आइसक्रीम को ठंडी कोठरी में, जो बर्फ से भी अधिक ठंडी होती है, कई घंटे तक रखते हैं। इससे आइसक्रीम कड़ी हो जाती है। फिर ग्राहकों के यहाँ (होटल और फेरीवालों के पास) विशेष मोटरलारियों में उसे भेजते हैं। जब तक वह बिक नहीं जाती, लारियों में वह साधारणत: प्रशीतकों (रेफ्रीजरेटरों) या गरमी न घुसने देने वाली पोटियों में रखी जाती है। [http://www.sweetrecipe.xyz/%E0%A4%9A%E0%A5%89%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%9F-%E0%A4%86%E0%A4%87%E0%A4%B8%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AE '''''चॉकलेट'' आइसक्रीम से'''] 1 बड़ा चमच क्रीम आपको 18 केलोरिस प्रदान करता है |
 
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