"होम रूल आन्दोलन": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:Flag of India 1917.svg|right|thumb|300px|अखिल भारतीय होम रूल लीग का ध्वज]]
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[[पहला विश्व युद्ध|प्रथम विश्वयुद्ध]] की आरम्भ होने पर [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के नरमपंथियों ने ब्रिटेन की सहायता करने का निश्चय किया। [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के इस निर्णय के पीछे संभवतः ये कारण था कि यदि [[भारत]] [[ब्रिटेन]] की सहायता करेगा तो युद्ध के पश्चात [[ब्रिटेन]] [[भारत]] को स्वतंत्र कर देगा। परन्तु शीघ्र ही [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] को ये अनुमान हो गया कि [[ब्रिटेन]] ऐसा कदापि नहीं करेगा और इसलिए [[भारतीय]] नेता असंतुष्ट होकर कोई दूसरा मार्ग खोजने लगे। यही असंतुष्टता ही होम रूल आन्दोलन के जन्म का कारण बनी। 1915 ई. से 1916 ई. के मध्य दो होम रूल लीगों की स्थापना हुई। 'पुणे होम रूल लीग' की स्थापना [[बाल गंगाधर तिलक]] ने और 'मद्रास होम रूल लीग' की स्थापना [[एनी बेसेन्ट|एनी बेसेंट]] ने की। होम रूल लीग [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] की सहायक संस्था की भांति कार्यरत हो गयी। इस आन्दोलन का उद्देश्य स्व-राज्य की प्राप्ति था परन्तु इस आन्दोलन में शस्त्रों के प्रयोग की अनुमति नहीं थी।
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[[एनी बेसेन्ट|श्रीमती ऐनी बेसेन्ट]] आयरलैंड की रहनेवाली थी। वे भारत में [[थियिसोफिकल सोसाइटी|थियोसोफिकल सोसायटी]] की संचालिका थी। वे भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति से बहुत प्रभावित थी। इसलिए आयरलैंड को छोड़कर वह भारत में बस गई थीं और भारत को अपनी मातृभूमि मानने लग गई थी। इस समय आयरलैंड में आयरिस नेता रेडमाण्ड के नेतृत्व में होमरूल लीग की स्थापना हुई थी जो वैधानिक तथा शांतिमय उपायों से आयरलैंड के लिए होमरूल तथा स्वशासन प्राप्त करना चाहती थी। 1913 में जब ऐनी बेसेन्ट [[इंग्लैण्ड]] गईं तो [[आयरलैण्ड|आयरलैंड]] की होमरूल लीग ने उनको सुझाव दिया कि भारत को स्वतंत्र कराने के लिए होमरूल आन्दोलन प्रारम्भ करें। श्रीमती ऐनी बेसेन्ट भारत को उसी तरह का स्वराज दिलाना चाहती थी, जैसा कि ब्रिटिश साम्राज्य के दूसरे उपनिवेशों में था अर्थात् भारत को अधिराज्य स्थिति (डोमिनियन स्टैटस) दिलाने की इच्छुक थी। इसी उद्देश्य से भारत लौटने पर कांग्रेस में शामिल हुईं और उदारवादियों तथा उग्रवादियों को एकताबद्ध कर होमरूल आन्दोलन चलाया।
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होमरूल आन्दोलन एक वैधानिक आन्दोलन था। इस आन्दोलन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित थे-
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*(४) युद्ध काल में भारतीय राजनीति शिथिल पड़ गई थी और सक्रिय कार्यक्रम तथा प्रभावशाली नेतृत्व के अभाव में राष्ट्रीय आन्दोलन की प्रगति का मार्ग अवरुद्ध हो गया था। अतः भारतीय जनता की सुषुप्तावस्था से जागना आवश्यक था। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु ऐनी बेसेन्ट ने होमरूल आन्दोलन प्रारम्भ किया। श्रीमती ऐनी बेसेन्ट का कहना था, ‘‘मैं एक भारतीय टॉम-टॉम हूं जिसका कार्य सोए हुए भारतीयों को जगाना है, ताकि वे उठें और अपनी मातृभूमि के लिए कुछ कार्य करें। होमरूल आन्दोलन उदारवादी आन्दोलन से भिन्न था। वह भारत के लिए स्वशासन की याचना नहीं, अपितु अधिकारपूर्ण माँग की अभिव्यक्ति था अर्थात् स्वशासन की प्राप्ति भारतीयों का जन्मसिद्ध अधिकार था। तिलक ने कहा था कि, ‘‘होमरूल मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, मैं इसे लेकर ही रहूँगा।’’ श्रीमती ऐनी बेसेन्ट का कहना था कि- होमरूल भारत का अधिकार है और राजभक्ति के पुरस्कार के रूप में उसे प्राप्त करने की बात कहना मूर्खतापूर्ण है। भारत राष्ट्र के रूप में अपना न्यायिक अधिकार ब्रिटिश साम्राज्य से माँगता है। भारत इसे युद्ध से पूर्व माँगता था, भारत इसे युद्ध के बीच माँग रहा है और युद्ध के बाद माँगेगा। परन्तु यह इस न्याय को पुरस्कार के रूप में नहीं वरन् अधिकार के रूप में माँगता है, इस बारे में किसी को कोई गलत धारणा नहीं होनी चाहिए।
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बाल गंगाधर तिलक छः वर्ष की लम्बी सजा काटने के बाद 16 जून 1914 को जेल से छूटे। कैद का अधिकांश समय माण्डले (बर्मा) में बीता था। भारत लौटे तो उन्हें लगा कि वह जिस देश को छोड़कर गए थे, वह काफी बदल गया है। स्वदेशी आन्दोलन के क्रांतिकारी नेता अरविन्द घोष ने सन्यास ले लिया तथा पांडिचेरी में रहने लगे थे। लाला लाजपत राय अमेरिका में थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस सूरत के विभाजन, आन्दोलनकारियों पर अंग्रेजों के दमनकारी प्रहारों और 1909के संवैधानिक सुधारों के कारण नरमपंथी राष्ट्रवादियों की निराशा के सम्मिलित सदमे से अभी उबर नहीं पाई थी।
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