"रामानंदी संप्रदाय": अवतरणों में अंतर

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==रामानन्द सम्प्रदाय के दार्शनिक सिद्धान्त==
Ramanandi Sampraday is basically a group of devotee , which are direct or indirect disciples of Shri RamanandaCharya ( Ramananda Acharya)
रामानन्द सम्प्रदाय को जो '''श्री संप्रदाय''' कहा जाता है उसमें 'श्री' शब्द का अर्थ [[लक्ष्मी]] के स्थान पर '[[सीता]]' किया जाता है। इस संप्रदाय का दार्शनिक मत [[विशिष्टाद्वैत]] ही माना जाता है, जैसा ऊपर उल्लिखित हो चुका है।
 
विशिष्टाद्वैत शब्द का अर्थ इस प्रकार किया गया है - '''विशिष्टं चा विशिष्टं च विशिष्टे, विशिष्टयोरद्वैते विशिष्टाद्वैतम्''' अर्थात् सूक्ष्म चिदचित् विशिष्ट अथवा कारण ब्रह्म और स्थूल चिदचिद् विशिष्ट अथवा कार्य ब्रह्म में अभिन्नता स्थापित करना ही विशिष्टाद्वैत का उद्देश्य है। रामानंद संप्रदाय में [[राम]] को ही [[ब्रह्म]] कहा गया है और 'सीताराम' आराध्य माने गए हैं।
 
===ब्रह्म राम===
स्वामी जी का ब्रह्म राम विश्व की उत्पत्ति, रक्षा और इसका लय करता है। उसके प्रकाश से सूर्य और चंद्रमा संसार को प्रकाशित करते हैं। जो वायु को चलायमान करता है, जो पृथ्वी को स्थिर रखता है, वह ज्ञानस्वरूप, साक्षी, अनेक शुभ गुणों से युक्त, अविनाशी एवं विश्वभर्ता ईश्वर ही ब्रह्म है। यह ब्रह्म नित्य है; ब्रह्मादि का विधायक, वेदों का उपदेष्टा, स्वयं सर्वज्ञ है। सदयोगियों की रखा करता है, चेतन को भी चेतनता प्रदान करता है, स्वतंत्र है। इस ब्रह्म पद से श्री रामचंद्र का ही बोध होता है। रामानंद उसी राम के सस्मित मुखकमल का स्मरण करते हैं जो जानकी के कटाक्षों से अवलोकित, भक्तों के मनोवांछित धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को देने के लिए कल्पतरु के समान है।
 
सीतापति भगवान् राम समस्त गुणों के एकमात्र आकर, सत्यस्वरूप, आनंदस्वरूप तथा चित्स्वरूप हैं। स्वयं विष्णु ही राम के रूप में अवतीर्ण हुए थे। वे लोकोत्तर वलशाली, अद्भुत दिव्य धनुष और बाणों से पूजित तथा आजानुबाहु हैं। परम पुरुषोत्तम राम सीता और लक्ष्मण के साथ नित्य ही सुशोभित रहते हैं। भक्त का विश्वास है कि नरशार्दूल भगवान् राम के प्रात: निद्रात्याग करन मात्र से सारा संसार जाग उठेगा। भगवान् ही जीवों के स्वामी हैं। एकमात्र वही शेषी हैं। जीव उनका शेष है। भगवान् राम ही जीवों के परम प्राप्य हैं। वही एकमात्र उपाय भी हैं। भगवान् राम के पार्षदों में लक्ष्मण परम प्राप्य हैं। वही एकमात्र उपाय भी हैं। भगवान् राम के पार्षदों में लक्ष्मण परम प्रिय हैं। अनुमान भी उनके दूसरे पार्षद हैं। स्वामी जी ने भगवान् राम के अर्चावतार अथवा प्रतिमावतार के चारों स्वयं व्यक्त, दैव, सैद्ध और मानुष की पूजा षोडशोपचार से करने के लिए आदेश दिया है। रामानंद जी के मत से सीता के द्वारा ही राम की प्राप्ति होती है। महारानी सीता पुरुषकारभूता हैं और वही उपाय भी हैं।
 
===जीव===
रामानंद ने जीव की साधारण ढंग से इस प्रकार व्याख्या की है - जो सदैव एक स्वरूप में स्थित है, जो ईश्वर की अपेक्षा अज्ञ, चेतन, सर्वदा पराधीन (भगवदधीन), सूक्ष्म से सूक्ष्म, बद्धादि भेदों से भिन्न भिन्न शरीरों में भिन्न भिन्न प्रकार का होकर भिन्न है। भगवान् से परिव्याप्त शरीर में जो रहता है, स्वकर्मानुसार फल भोगनेवाला, भगवन् ही जिसके सर्वदा सहायक हैं, अपने को कर्ता, भोक्ता समझने का जिसे अभिमान है, तत्व के जिज्ञासुओं द्वारा जानने योग्य है, श्रेष्ठ विद्वान् उसी को जीव कहते हैं। यह जीव ज्ञानस्वरूप, आनंदस्वरूप तथा ज्ञान और सुख आदि गुणोंवाला, अणु परिमाणवाला, देहेंद्रियादि से भी अपूर्व, परमात्मा का प्रिय, नित्य एवं स्वप्रकाश है। भगवान् शेषी और जीव उनका शेष है। भगवान् ही जीवों के स्वामी हैं। जीव परतंत्र है। अत: भगवान् की निर्हेतुक कृपा के बिना जीव को मोक्ष नहीं मिल सकता।
 
रामानंद ने भगवान् और जीव में पिता-पुत्र-संबंध, रक्ष्य-रक्षक-संबंध, सेव्य-सेवक-संबंध, आत्मा-आत्मीयत्व-संबंध तथा भोग्य-भोक्तृत्व आदि नव प्रकार के संबंधों को स्वीकार किया है। जीवों के दो भेद हैं - बद्ध और मुक्त।
 
===बद्ध जीव===
अनादि कर्मों की राशि से अनेक प्रकार के शरीर का अभिमानी जीवबद्ध कहा गया है। बद्ध जीव दो प्रकार के हैं - १. मुमुक्षु, २. बुभुक्षु। भगवान् की निर्हेतुक कृपा से अविद्यादि दुष्ट कर्मों की वासना की रुचि की प्रवृत्ति के संबंध से छूटने का प्रयत्न करनेवाले जीवों को मुमुक्षु कहते हैं। इसके विरुद्ध सांसारिक भोग की कामनावाले जीव बुभुक्षु कहलाते हैं।
 
मुमुक्षु जीव भी दो प्रकार के हैं - १. शुद्ध भक्त, २. चेतनांतर साधन। ज्ञानादि साधनहीन, स्मृति भक्ति में निष्ठित वेदोक्त वर्णाश्रम कर्म करनेवाले और उपासना निरत भक्त शुद्ध भक्त कहलाते हैं। स्वानुष्ठित कर्म विज्ञानादि समूह को ही प्रधान साधन मानकर किसी उत्तम संबंध विशेष को प्राप्त करके सदा मोक्ष में निश्चय वाले जीव चेतनांतर साधन कहलाते हैं।
 
मोक्षपरायण जीव भी दो प्रकार के हैं - १. प्रपन्न, २. पुरुषकारनिष्ठ। अन्य सभी को छोड़कर परम कृपालु, समर्थ, अविनाशी श्रीराम को ही प्राप्य और उनको ही उपाय समझकर जो जीव संस्थित हैं, उन्हें प्रपन्न कहते हैं। श्रीराम की स्वतंत्रता का विचार करके कुछ संकुचित होकर, परम कृपालु आचार्य को ही उपाय मानकर स्थित रहनेवाले जीव पुरुषकारनिष्ठ कहलाते हैं।
 
प्रपन्न जीव भी दो प्रकार के होते हैं - १. दृप्त, २. आर्त। शरीरस्थिति पर्यत स्वकर्मानुसार प्राप्त दु:खादि का भोग करते हुए शरीर के अंत में मोक्ष सिद्धि का निश्चय करके महाबोध एवं अत्यंत विश्वासयुक्त रहनेवाले जीवदृप्त कहलाते हैं। संसृति को उसी क्षण न सहन करतेश् हुए जो भगवात् प्राप्ति में अत्यंत शीघ्रता चाहते हैं वे आर्त जीव है।
 
पुरुषकारनिष्ठ जीव भी दो प्रकार के हैं - १. आचार्य-कृपा-मात्र प्रपन्न, २. महापुरुष-सेवातिरेक-प्रपन्न। अंत में रामानंद ने बद्ध जीवों के संबंध में कहा है कि शुद्ध भक्त वही है जो भगवान् के यश के श्रवण, कीर्तनादि में ही निष्ठा रखते हैं।
 
===मुक्त जीव===
ये जीव दो प्रकार के हैं १. नित्य, २. कादाचित्क। नित्य जीव गर्भ जन्मादि दु:खों के अनुभव करनेवाले कहलाते हैं, जैसे - हनुमान। नित्य जीव भी दो प्रकार के हैं - १. परिजन, २. परिच्छद। हनुमान परिजन और किरीट आदि परिच्छेद की परिभाषा में आते हैं। इसी प्रकार कादाचित्क जीव के भी दो भेद किए गए हैं - १. भागवत, २. केवल। जो जीव भगवत्परायण हैं उन्हें भागवत कहते हैं। भागवत जीव के भी दो भेद हैं - १. भगवत्परायण होकर नित्य उनका ही ध्यान करनेवाले जीव। २. भगवद्-गुणानुसंधान-परायण के साथ कैकयेपरायण होनेवाले जीव। इसी प्रकार केवल जीव के भी दो भेद बतलाए गए हैं - १. दु:खभावनैकपरायण, २. अनुभूति परायण।
 
===प्रकृति===
रामानंद के मत के अनुसार प्रकृति के संबंध में उनकी वही धारणा है जो सांख्य में वर्णित है। तत्वविद्, विकाररहित, संपूर्ण विश्व का कारण, एक होकर भी अनेक प्रकार से शोभित, शुक्लादि भेद से अनेक वर्णोवाली, सत्व, रज, तम आदि गुणों को प्रश्रय देनेवाली, अव्यक्त प्रधान आदि शब्दों से अभिहित, स्वतंत्र व्यापारहीन, ईश्वराधीन रहनेवाली और महत्तत्व एवं अहंकार आदि को उत्पन्न करनेवाली सत्ता को ही प्रकृति कहते हैं। रामानंद जी ने इन विशेषणों का विवेचन नहीं किया है, केवल संकेत मात्र किया है।
 
===मोक्ष===
रामानंद के मत से भगवान् की कृपा से सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर साकेत लोक को प्राप्त करके परब्रह्म से सायुज्य की प्राप्ति करना ही मोक्ष कहलाता है। रामानंद संप्रदाय में भक्त, श्री राम की कृपा से सायुज्य मुक्ति प्राप्त करता है और उनके साथ नित्य क्रीड़ा करता है।
 
===साकेत===
रामानंद के मत से जीव सुषुम्ना, अर्चिमार्ग, अर्हमार्ग, उत्तरायण, संवत्सर, सूर्य, चंद्र, और विद्युत् आदि मार्गों से होता हुआ दिव्य लोक साकेत में पहुँचकर विश्राम करता है। यही भगवान् राम का लोक है, जहाँ करोड़ों सूर्य के प्रकाश से युक्त हेम का सिंहासन है, जहाँ स भक्त फिर इस संसार में नहीं लौटता। इस साकेत लोक के चारों ओर विरजा नदी बहती रहती है जिसका जल अत्यंत निर्मल है।