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दिल्ली सिंहासन तोमर राजवंश की मूल वंशावली के अनुसार , यह जानकारी पहले से ही संन 2010 से फेसबुक के तोमर राजवंश के अधिकृत पेज facebook.com/tomarrajvansh पर उपलब्ध है , इसके अतिरिक्त यू ट्यूब के चैनल youtube.com/gwaliortimesintv पर फिल्म के रूप में पूर्व से ही उपलब्ध है । -- नरेन्द्र सिंह तोमर
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'''शहाब-उद-दीन मुहम्मद ग़ोरी''' १२वीं शताब्दी का अफ़ग़ान सेनापति था जो १२०२ ई. में [[ग़ोरी साम्राज्य]] का शासक बना। सेनापति की क्षमता में उसने अपने भाई ग़ियास-उद-दीन ग़ोरी (जो उस समय सुल्तान था) के लिए [[भारतीय उपमहाद्वीप]] पर ग़ोरी साम्राज्य का बहुत विस्तार किया और उसका पहला आक्रमण [[मुल्तान]] (११७५ ई.) पर था। [[पाटन]] (गुजरात) के शासक भीम द्वितीय पर मोहम्मद ग़ौरी ने ११७८ ई. में आक्रमण किया किन्तु मोहम्मद ग़ौरी बुरी तरह पराजित हुआ।
 
मोहम्मद ग़ोरी और [[पृथ्वीराज चौहान]] के बीच तराईन के मैदान में दो युद्ध हुए। ११९१ ई. में हुए तराईन के प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की विजय हुई किन्तु अगले ही वर्ष ११९२ ई. में पृथ्वीराज चौहान को तराईन के द्वितीय युद्ध में मोहम्मद ग़ोरी ने बुरी तरह पराजित किया। मोहम्मद ग़ोरी ने चंदावर के युद्ध (११९४ ई.) में दिल्ली के गहड़वाल वंश [ जयचंद गढ़वाल वंश का शासक नहीं था , दिल्ली सिंहासन की वंशावली तोमर राजवंश के अनुसार दिल्ली के सम्राट महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर के भाई मदनपाल सिंह तोमर की दो पुत्रियां थीं , जिनमें एक अजमेर के राजा विग्रहराज चौहान को बियाही थी , जिसका पुत्र पृथ्वीराज चौहान था , दूसरी पुत्री कन्नौज के राठौर राजा जयचंद राठौर को बियाही थी, नाते से पृथ्वीराज चौहान मौसा भतीजे / भानजे थे , संयोगिता के कारण दोनों में वैर पड़ गया था , जो कि महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर के कोई संतान नहीं होने के कारण और तीर्थयात्रा पर जाने और पृथ्वीराज चौहान को देखरेख के लिये दिल्ली सल्तनत सौंप जाने के दो बरस बाद वापस पुत्र सोनपाल सिंह तोमर के साथ दिल्ली लौटने पर पृथ्वीराज चौहान द्वारा महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर को साम्राज्य और सिंहासन वापस नहीं लौटाने के कारण जयचंद राठौर और पृथ्वीराज में दुश्मनी और ज्यादा बढ़ गई , तब पृथवीराज के विरूद्ध जयचंद ने मोहम्मद गौरी का साथ देकर पृथ्वीराज को पहले पराजित करवाया और फिर मरवाया , तोमरों ने भी पृथ्वीराज चौहान का इस युद्ध में साथ नहीं दिया ] के शासक [[जयचंद]] को पराजित किया। मोहम्मद ग़ौरी ने भारत में विजित साम्राज्य का अपने सेनापतियों को सौप दिया और वह गज़नी चला गया। बाद में गोरी के गुलाम [[कुतुबुद्दीन ऐबक]] ने [[गुलाम राजवंश]] की स्थापना की ।
मोहम्मद गौरी के शासनकाल में महाराजा अनंगपाल सिंंह तोमर के ही शासनकाल के सिक्के (सनातन धर्म) चलते थे , जिन्हें न पृथ्वीराज ने बदला और न मोहम्मद गौरी ने ।
मोहम्मद गौरी के समय से भारत में मुस्लिम धर्म आरंभ नहीं होता और न ही मोहम्मद गौरी ने और पृथ्वीराज चौहान ने दिल्ली साम्राज्य व सल्तनत पर से तोमर पांडव राजवंश के राजचिह्नों और ध्वज व हरे चौकोर चंद्रमा के चिह्न वाले झंडे को हटाया और न बदला । बल्कि आगे के मुगल शासकों ने इसे अपना कर इसे ही अपना झंडा बना लिया और राज सिंहासन के अलावा अपने पूजा स्थलों मस्जिद आदि पर भी तोमर राजवंश के इसी झंडै का प्रयोग किया ।
 
== जीवनी ==