"देवीभागवत पुराण": अवतरणों में अंतर
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यह पुराण परम पवित्र वेद की प्रसिद्ध श्रुतियों के अर्थ से अनुमोदित, अखिल शास्त्रों के रहस्यका स्रोत तथा आगमों में अपना प्रसिद्ध स्थान रखता है। यह सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, वंशानुकीर्ति, मन्वन्तर आदि पाँचों लक्षणों से पूर्ण हैं। पराम्बा भगवती के पवित्र आख्यानों से युक्त है। इस पुराण में लगभग १८,००० श्लोक है।
एक बार भगवत्-अनुरागी तथा पुण्यात्मा महर्षियों ने श्री वेदव्यास के परम शिष्य सूतजी से प्रार्थना
महात्माओं ने सूतजी से भागवत् पुराण के संबंध में ये जिज्ञासाएं रखीं:
* पवित्र श्रीमद् देवी भागवत् पुराण का आविर्भाव कब हुआ ?
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== आविर्भाव ==
महर्षि पराशर और देवी सत्यवती के संयोग से श्रीनारायण के अंशावतार देव व्यासजी का जन्म हुआ। व्यासजी ने अपने समय और समाज की स्थिति पहचानते हुए वेदों को चार भागों में विभक्त किया और अपने चार पटु शिष्यों को उनका बोध कराया। इसके पश्चात् वेदाध्ययन के अधिकार से वंचित नर-नारियों का मंदबुद्धियों के कल्याण के लिए अट्ठारह पुराणों की रचना की, ताकि वे भी धर्म-पालन में समर्थ हो सकें। सूतजी ने कहा- महात्मन्! गुरुजी के आदेशानुसार सत्रह पुराणों के प्रसार एवं प्रचार का दायित्व मुझ पर आया, किंतु भोग और मोक्षदाता भागवत पुराण स्वयं गुरुजी ने जन्मेजय को सुनाया। आप जानते हैं-जन्मेजय के पिता राजा परीक्षित को तक्षक सर्प ने डस लिया था और राजा ने अपनी हत्या के कल्याण के लिए श्रीमद् भागवत् पुराण का श्रवण किया था। राजा ने नौ दिन निरंतर लोकमाता भगवती दुर्गा की पूजा-आराधना की तथा मुनि वेदव्यास के मुख से लोकमाता की महिमा से पूर्ण भागवत पुराण का श्रवण किया।
;देवी पुराण की महिमा
:देवी पुराण के पढ़ने एवं सुनने से भयंकर रोग, अतिवृष्टि, अनावृष्टि भूत-प्रेत बाधा, कष्ट योग और दूसरे आधिभौतिक, आधिदैविक तथा आधिदैहिक कष्टों का निवारण हो जाता है। सूतजी ने इसके लिए एक कथा का उल्लेख करते हुए कहा-वसुदेव जी द्वारा देवी भागवत पुराण को पारायण का फल ही था कि प्रसेनजित को ढूंढ़ने गए श्रीकृष्ण संकट से मुक्त होकर सकुशल घर लौट आए थे। इस पुराण के श्रवण से दरिद्र धनी, रोगी-नीरोगी तथा पुत्रहीन स्त्री पुत्रवती हो जाती है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र चतुर्वर्णों के व्यक्तियों द्वारा समान रूप से पठनीय एवं श्रवण योग्य यह पुराण आयु, विद्या, बल, धन, यश तथा प्रतिष्ठा देने वाला अनुपम ग्रंथ है।
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