"त्रिदोष": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
संजीव कुमार (वार्ता | योगदान) टैग: किए हुए कार्य को पूर्ववत करना |
|||
पंक्ति 1:
[[Image:Ayurveda humors.svg|thumb|त्रिदोष तथा [[
[[वात]], [[पित्त]], [[कफ]] इन तीनों को
आयुर्वेद साहित्य शरीर के निर्माण में दोष, धातु मल को प्रधान माना है और कहा गया है कि 'दोष धातु मल मूलं हि शरीरम्'। आयुर्वेद का प्रयोजन शरीर में स्थित इन दोष, धातु एवं मलों को साम्य अवस्था में रखना जिससे स्वस्थ व्यक्ति का स्वास्थ्य बना रहे एवं दोष धातु मलों की असमान्य अवस्था होने पर उत्पन्न विकृति या रोग की चिकित्सा करना है।
पंक्ति 48:
* [[चरक संहिता]]
* [[सुश्रुत संहिता]]
* [[
* [[चिकित्सा चन्द्रोदय]] (हरिदास वैद्य, मथुरा)
पंक्ति 58:
==बाहरी कड़ियाँ==
*[
*[
[[श्रेणी:आयुर्वेद]]
|