"पुष्यमित्र शुंग": अवतरणों में अंतर

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==== गोत्र का उद्भव ====
[[महाभाष्य]] में [[पतञ्जलि|पतंजलि]] और [[पाणिनि]] की अष्टाध्यायी के अनुसार पुष्यमित्र शुंग(परशुराम) जो बाद में राम कहलाए भारद्वाज गोत्र के [[ब्राह्मण]] थे। इस समस्या के समाधान के रूप में जे॰सी॰ घोष ने उन्हें''द्वैयमुष्यायन'' बताया जिसे ब्राह्मणों की एक द्वैत गोत्र माना जाता है। उनके अनुसार द्वैयमुष्यायन अथवा दैत गोत्र, दो अलग-अल्ग गोत्रों के मिश्रण से बनी ब्राह्मण गोत्र होती है अर्थात पिता और मात्रा की गोत्र (यहाँ भारद्वाज और कश्यप)। ऐसे ब्राह्मण अपनी पहचान के रूप में दोनों गोत्र रख सकते हैं।
 
<ref>''घोष, जे॰सी॰,"The Dynastic-Name of the Kings of the Pushyamitra Family," J.B.O.R.S, Vol. XXXIII, 1937, पृष्ठ 359-360''</ref> परंतु उज्जैन नगर में अत्रियों की शाखों का निकाय होने के कारण इन्हें अत्रि गौत्रीय भी माना जाता है।