"केतु": अवतरणों में अंतर

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* एकादश भाव में केतु हर प्रकार का लाभदायक होता है। एस प्रकार का जातक भाग्यवान, विद्वान, उत्तम गुणों वाला, तेजस्वी किन्तु उदर रोग से पीड़‍ित रहता है।
* द्वादश भाव में केतु हो तो जातक उच्च पद वाला, शत्रु पर विजय पाने वाला, बुद्धिमान, धोखा देने वाला तथा शक्की स्वभाव होता है।
 
=== [https://www.dskastrology.com/ketu-gochar-2020/ केतु ग्रह का अन्य ग्रहों के साथ क्या सम्बंध है] ===
जब केतु ग्रह चन्द्र के साथ मिलता है तब चन्द्र ग्रहण होता है , और इस चन्द्र ग्रहण का अर्थ है मनुष्य की मानशिक शांति भंग होना । यदि दूध मे खटाई डाली जाय तो दूध फट जाता है वैसे ही यहाँ चन्द्र दूध का काम करता है और केतु खटाई का यानि यह होने के बाद अच्छा दूध खराब हो जाता है । वस यही कारण है की दूध का फट जाना अशुभ माना जाता है । लेकिन जब कोई पशु बच्चे को जन्म देता है तो उसके कुछ दिन बाद तक वह फटा हुआ दूध देता है जिसे खीस कहा जाता है उसे खाना शुभ माना जाता था परंतु आज कल लोग खुद ही दूध फाड़ कर मिठाइयाँ बनाते हैं । वो यह नही जानते है की वो स्वम चन्द्र को खराब कर रहे हैं । प्राचीन समय मे जब चन्द्र ग्रहण होता था तब अपाहिज लोग बहुत तेज चिल्लाकर लोगों को यह बताते थे की आज चन्द्र ग्रहण है कुछ दान पुण्य करो यह हमारे लिए संकट का समय है । वो इसलिए क्यूंकी चन्द्र ग्रहण को अशुभ माना जाता था । परंतु आज के समय मे लोग स्वम चन्द्र को पीड़ित कर रहे हैं । ऐसे ही बुद्ध व्यापार केतु ब्याज । यानि की जो व्यक्ति अपने व्यापार मे ब्याज की चिंता करने लगता है वह अपने व्यापार मे सफलता प्राप्त नही कर सकता । इसीलिए इस दोनों का साथ अच्छा नही होता है । इसी प्रकार कुत्ता केतु को उसकी दुम यानि बुद्ध को कटवाने के बाद उसके हड्काने का खतरा नही रहता है ।
 
मंगल ग्रह शेर होता हैऔर केतु ग्रह कुत्ता होता है ठीक इसी प्रकार शेर के सामने कुत्ते की कोई औकात नही होती है । शेर को देखकर कुत्ते का खून खुश्क हो जाय ऐसे ही दोनों का साथ होना दोषपूर्ण हो जाता है । यदि सूर्य के साथ केतु है तो यह सूर्य के प्रभाव को कम कर देता है । सूर्य नमक होता है और केतु खटाई जैसा की आप सबको पता होता है की किसी चीज मे खटाई दाल देने पर नमक का प्रभाव कम हो जाता है ठीक उसी तरह केतु सूर्य के प्रभाव को कम कर देता है । पनतु यह केतु शनि के साथ होने पर किसी को बुरा फल नही देता परंतु जब इन दो ग्रहों के साथ कोई तीसरा ग्रह भी हो तो इन तीनों का प्रभाव कम हो जाता है ।
 
यह केतु गुरु के साथ अति उत्तम फल देता है क्योंकि गुरु का सम्बन्ध अध्यात्म से है और केतु दरवेस फकीर होता है । इसीलिए जो साधु आध्यात्मिक रूप से पूर्ण होगा वी इन दोनों युति को को प्रदर्शित करेगा । यह केतु जब बुद्ध के साथ होता है तो यह बुद्ध को बहुत बुरे फल देता है जबकि यदि यह शुक्र के साथ होता है तो यह शुक्र की सहायता करता है । क्योंकि केतु ग्रह संतान का कारक होता है और चन्द्र माता का इसलिए जब कभी भी केतु चन्द्र के साथ हो या फिर चन्द्र के चौथे नंबर खाने मे हो तो व्यक्ति को संतान से संबन्धित परेशानी और माता को भी परेशानी तथा व्यक्ति को मासिक परेशानी का भी सामना करना पद सकता है ।  केतु के बारे मे एक यह कथन हमारे जीवन मे होने वाली सभी परेशानियों के लिए सत्य है । कहा जाता है की न तो चारपाई टूटे और न ही बुढ़िया मरे और न ही कोई बीमारी मालूम पड़े और न ही कुछ ठीक हो यानि धीरे धीरे कमजोर होते जाना तड़पते जाना और मौत भी न आना यह सब केतु का ही करा धारा होता है ।  जैसा की आपने देखा होगा की कोई उम्र दराज इन्सान चारपाई में काफी समय तक रहता है और दुःख पाता रहता है लेकिन उसे मौत भी नशीब नही होती और ऐसी मौत केवल केतु देता है ।
 
केतु को अला बला यानी भुत प्रेत का कारक भी माना गया है ऐसे में मकान यदि किसी गली में आखरी कोने का हो या मकान केतु का हो यानी जिस मकान में तिन दरवाजे हो या तिन तरफ से खुला हो और केतु कुंडली में खराब हो तो ऐसी बला का उस मकान पर ज्यादा असर होगा| इस मकान के आसपास को कोई मकान गिरा हुआ यानी बर्बाद और खंडर हालत का होगा और कुतों का वहाँ आवागमन होगा या कोई खाली मैदान भी हो सकता है ।  पेशाब की बिमारी होना ,,संतान  से सम्बन्धित परेशानी  होना , पांव मे उँगलियों के  नाख़ून खराब हो जाना ,सुनने की छमता  कम हो जाना अदि यह सब  केतु खराब होने की निशानी होती है ।  हाथ के अंगूठे के नाख़ून वाला हिस्सा छोटा हो तो केतु दुश्मनों के साथ या उनके घर में होगा तथा व्यक्ति को अशुभ फल देगा इसी तरह अगर ये हिस्सा छोटा हो तो भी केतु बुरा फल देगा । जिस व्यक्ति के लिए केतू अशुभ होता है वे यदि कान मे छेद करवा के सोना पहनते है तो उन्हे हमेशा लाभ देगा यह केतू । और व्यक्ति यदि धारी वाले कुत्ते की सेवा करता है तो भी उसे लाभ होगा ।
 
भगवान गणेश की पुजा करना , अपाहिज व्यक्ति की सेवा करना तथा उसी हमेशा मदद करना यह सब इस केतू के मुख्य उपाय हैं ।जब व्यक्ति की  कुंडली में केतु अशुभ हो तो उसके बुनियादी ग्रह शुक्र को भी आराम नही मिलता है । जैसे की सबको पता होता है की केतु  ( पुत्र ) और शुक्र ( रज , वीर्य , पत्नी ) का ही फल होता है । इसी कारण इसका बुनियादी ग्रह शुक्र कहा गया है । अगर कभी शुक्र को उसके साथी ग्रह बुध की मदद न मिले या तो फिर व्यक्ति की कुंडली मे मंगल बद्ध हो तो केतु के उपाय से शुक्र को भी सहायता मिलेगी । हम कह सकते हैं की शुक्र और शनि की गाड़ी केतु के बिना आगे नही बढ़ सकती है ।
 
यहाँ तक की लाल किताब मे केतु ग्रह को व्रहस्पति ग्रह के बराबर माना गया है । इसी कारण केतु को व्रहस्पति का चेला बताया गया है । ऐसे समय मे जब शुक्र की सहायता करने वाला केतु ढीला हो तब व्यक्ति को व्रहस्पति का उपाय करना चाहिए । और फिर इसके बाद केतु शुक्र की सहायता करने लगेगा । केतु जब भी बुध के साथ उसके तीसरे या छठे भाव मे होगा तो यह व्यक्ति को अशुभ फल देता है । इसीलिए यह केतु पीठ का कारक भी माना गया है । कहा जाता है की उभरी हुई पीठ अमीरी का संकेत देती है और जबकि चोटी पीठ गुलामी का सांकेट देती है ।    
 
 
 
"https://hi.wikipedia.org/wiki/केतु" से प्राप्त