"ईद अल-अज़हा": अवतरणों में अंतर

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* ईदुज़ जुहा
=== त्याग का उत्थान===
बकरीद का त्यौहार [[हिजरी]] के आखिरी महीने [[ज़ु अल-हज्जा]] में मनाया जाता है। पूरी दुनिया के मुसलमान इस महीने में [[मक्का]] [[सउदी अरब|सऊदी अरब]] में एकत्रित होकर हज मनाते है। ईद उल अजहा भी इसी दिन मनाई जाती है। वास्तव में यह हज की एक अंशीय अदायगी और मुसलमानों के भाव का दिन है। दुनिया भर के मुसलमानों का एक समूह मक्का में हज करता है बाकी मुसलमानों के अंतरराष्ट्रीय भाव का दिन बन जाता है। ईद उल अजहा का अक्षरश: अर्थ त्याग वाली ईद है इस दिन जानवर की कुर्बानी देना एक प्रकार की प्रतीकात्मक कुर्बानी है।<ref>{{Cite web|url=https://navbharattimes.indiatimes.com/astro/photo/bakrid-2020-why-and-how-eid-al-adha-is-celebrated-82852/|title=Page 2 : Eid Al-Adha Bakrid 2020: क्‍यों मनाई जाती है बकरीद और क्‍या होता है बकरे के गोश्‍त का|last=नवभारतटाइम्स.कॉम|date=2020-07-30|website=नवभारत टाइम्स|language=hi-IN|access-date=2020-08-01}}</ref>
 
हज और उसके साथ जुड़ी हुई पद्धति हजरत इब्राहीम और उनके परिवार द्वारा किए गए कार्यों को प्रतीकात्मक तौर पर दोहराने का नाम है। हजरत [[अब्राहम|इब्राहीम]] के परिवार में उनकी पत्नी हाजरा और पुत्र इस्माइल थे। मान्यता है कि हजरत इब्राहीम ने एक स्वप्न देखा था जिसमें वह अपने पुत्र इस्माइल की कुर्बानी दे रहे थे हजरत इब्राहीम अपने दस वर्षीय पुत्र इस्माइल को ईश्वर की राह पर कुर्बान करने निकल पड़े। पुस्तकों में आता है कि ईश्वर ने अपने फरिश्तों को भेजकर इस्माइल की जगह एक जानवर की कुर्बानी करने को कहा। दरअसल इब्राहीम से जो असल कुर्बानी मांगी गई थी वह थी उनकी खुद की थी अर्थात ये कि खुद को भूल जाओ, मतलब अपने सुख-आराम को भूलकर खुद को मानवता/इंसानियत की सेवा में पूरी तरह से लगा दो। तब उन्होनें अपने पुत्र इस्माइल और उनकी मां हाजरा को मक्का में बसाने का निर्णल लिया। लेकिन [[मक्का]] उस समय रेगिस्तान के सिवा कुछ न था। उन्हें मक्का में बसाकर वे खुद मानव सेवा के लिए निकल गये।