"देवनारायण": अवतरणों में अंतर

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gurjar
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'''श्री देवनारायण भगवान श्री विष्णु के अवतार हैं। इनकी पूजा पुरे भारतवर्ष में होती है।'''
 
{{Infobox deity
| image = Shri Devnarayan BhagwanVeerGurjar.JPG
| name = श्री देवनारायण भगवान
| affiliation = श्री देवनारायण भगवान
| affiliation = देव
| weapon = तलवार, भाला
| father = गुर्जरसवाई महाराजा सवाईभोज बगड़ावत चौहानभोज
| mother = श्री साडू माता खटाणी
| consort = पीपल दे पंवार
| region = राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश ,हरियाणा
| festivals = देवनारायण जयन्ती, मकर संक्रांति, देव एकादशी
}}
|देवजी के बचपन का नाम=उदयसिंह ( ऊदल )|घोड़े का नाम=लीला घोड़ा|वाद्ययंत्र=जन्तर|children=}}
'''देवनारायण''' [[राजस्थान]] के एक लोक देवता और एक योद्धा थे।<ref>http://www.theindianportrait.com/artwork/maharaja-bisal-dev-warrior-king-of-ajmer/</ref> वे [[भगवान]] [[विष्णु]] के [[अवतार]] हैं। इनकी पूजा मुख्यत: [[राजस्थान]], [[हरियाणा]] तथा [[मध्यप्रदेश]] में होती है। इनका भव्य मंदिर [[आसीन्द]] में है।
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== अवतार ==
'''भगवान''' '''श्री देवनारायण बगड़ावत राजवंश'''वंश के थे । वे '''नाग वंशीय गुर्जर''' थे जिनका मूल स्थान वर्तमान में अजमेर के निकट नाग पहाड़ था । '''[[गुर्जर]]''' जाति एक संगठित , सुसंस्कृत वीर जातियों में गिनी जाती है जिसका आदिकाल से गौरवशाली इतिहास रहा है । समाज में प्रचलित लोक कथाओं के माध्यम से '''गुर्जर''' जाति के शौर्य - पुरूष देवनारायण के सम्बन्ध में विस्तृत रूप से जानकारी मिलती है । श्री देवनारायण महागाथा में इनको '''चौहान गोत्र गुर्जर वंश''' से सम्बन्धित बताया है । देवनारायण की '''फड़''' के अनुसार राजा '''माण्डलजी''' के राजा '''हीराराम''' , हीराराम के राजा '''बाघसिंह''' और बाघसिंह के 24 पुत्र हुए जो '''बगड़ावत''' कहलाये । इन्हीं में से बड़े भाई महाराजासवाई '''श्री सवाईभोज'''भोज और माता '''साडू''' ( सेढू ) के पुत्र के रूप में वि . सं . '''968''' ( 911 ई . ) में माघ शुक्ला सप्तमी को आलौकिक पुरूष '''देवनारायण''' का जन्म '''मालासेरी''' में हुआ ।
 
=='''बगड़ावत बगडावत भारत''' ==
'''राणी जयमती''' (जैमति) को लेकर राण के राजा '''दुर्जनसाल''' से बगड़ावतों की '''जंग''' हुई। युद्ध से पूर्व बगडावतों तथा दुर्जनसाल की मित्रता थी तथा वे '''धर्म के भाई''' थे। ये युद्ध '''खारी नदी''' के किनारे हुआ था। बगड़ावतों ने अपना '''वचन''' रखते हुए राणी जैमति को सिर दान में दिये थे। बगड़ावतों के '''वीरगति''' प्राप्त होने के बाद देवनारायण का '''अवतार''' हुआ तथा उन्होंने '''राजा दुर्जनसाल का वध''' किया।
 
देवनारायण की ३ रानियां थीं- पीपलदे ([[धारा]] के गुर्जर परमार राजा की बेटी), नागकन्या तथा दैत्यकन्या।
 
== परिचय ==
'''श्री देवनारायण भगवान''' पराक्रमी योद्धा थे जिन्होंने अत्याचारी शासकों के विरूद्ध कई संघर्ष एवं युद्ध किये । वे शासक भी रहे । उन्होंने अनेक सिद्धियाँ प्राप्त की । चमत्कारों के आधार पर धीरे - धीरे वे गुर्जरों के देव स्वरूप बनते गये एवं अपने '''इष्टदेव''' के रूप में पूजे जाने लगे । देवनारायण को विष्णु के अवतार के रूप में '''गुर्जर समाज''' द्वारा राजस्थान व दक्षिण - पश्चिमी मध्य प्रदेश में अपने लोकदेवता के रूप में पूजा की जाती है । उन्होंने लोगों के दुःख व कष्टों का निवारण किया । देवनारायण महागाथा में बगडावतों और राण भिणाय के शासक के बीच युद्ध का रोचक वर्णन है ।
 
श्री देवनारायण भगवान जीदेवनारायणजी का अन्तिम समय ब्यावर तहसील के मसूदा से 6 कि . मी . दूरी पर स्थित देहमाली ( देमाली ) स्थान पर गुजरा । भाद्रपद शुक्ला सप्तमी को उनका वहीं देहावसान हुआ । देवनारायण से पीपलदे द्वारा सन्तान विहीन छोड़कर न जाने के आग्रह पर बैकुण्ठ जाने पूर्व '''पीपलदे''' से एक पुत्र '''बीला''' व पुत्री '''बीली''' उत्पन्न हुई । उनका पुत्र ही उनका प्रथम पुजारी हुआ ।
 
श्री कृष्ण की तरह श्री देवनारायण भगवान भी गायों के रक्षक थे । उन्होंने बगड़ावतों की पांच गायें खोजी , जिनमें सामान्य गायों से अलग विशिष्ट लक्षण थे । देवनारायण प्रातःकाल उठते ही '''सरेमाता''' गाय के दर्शन करते थे । यह गाय बगड़ावतों के गुरू '''रूपनाथ''' ने सवाई भोज को दी थी । देवनारायण के पास '''98000''' पशु धन था । जब देवनारायण की गायें राण भिणाय का राणा घेर कर ले जाता तो देवनारायण गायों की रक्षार्थ राणा से युद्ध करते हैं और गायों को छुड़ाकर लाते थे । देवनारायण की सेना में ग्वाले अधिक थे । 1444 ग्वालों का होना बताया गया है , जिनका काम गायों को चराना और गायों की रक्षा करना था । देवनारायण ने अपने अनुयायियों को गायों की रक्षा का संदेश दिया ।
 
इन्होंने जीवन में बुराइयों से लड़कर अच्छाइयों को जन्म दिया । आतंकवाद से संघर्ष कर सच्चाई की रक्षा की एवं शान्ति स्थापित की । हर असहाय की सहायता की । राजस्थान में जगह - जगह इनके अनुयायियों ने देवालय अलग - अलग स्थानों पर बनवाये हैं जिनको देवरा भी कहा जाता है । ये देवरे अजमेर , चित्तौड़ , भीलवाड़ा , व टोंक में काफी संख्या में है । देवनारायण का प्रमुख मन्दिर भीलवाड़ा जिले में आसीन्द कस्बे के निकट खारी नदी के तट पर मालासेरीसवाई डूंगरी है,जो मालासेरी गांव के पास है।देवनारायण का अन्य प्रसिद्ध मंदिर गोठा दड़ावत गांवभोज में है जो खारी नदी और नेकाडी नदी के संगम पर स्थित है। गोठा दडावट बगड़ावत राजधानी भी रही है। देवनारायण का एक प्रमुख देवालय निवाई तहसील के जोधपुरिया गाँव में वनस्थली से 9 कि . मी . दूरी पर है । सम्पूर्ण भारत में गुर्जर समाज का यह सर्वाधिक पौराणिक तीर्थ स्थल है । देवनारायण की पूजा भोपाओं द्वारा की जाती है । ये भोपा विभिन्न स्थानों पर जाकर गुर्जर समुदाय के मध्य फड़ ( लपेटे हुये कपड़े पर देवनारायण जी की चित्रित कथा ) के माध्यम से देवनारायण की गाथा गा कर सुनाते हैं ।
 
[[लोकदेवता]] मालदेव जी ([[मांगटजी]]) पंवार इनके समकालीन हुए है। [[मांगटजी]] के संबंध में कहा जाता है कि उनकी माता जगमलदे और देवनारायण की मां साडू माता धर्म बहिन थी। [[मांगटजी]] को देवनारायणजी की कृपा व अपने पूर्व जन्मों के पुण्यफल तथा रावत-राजपूतों के आदिगुरू थानेश्वर रावल जी के आशीर्वाद से सोलह विद्याएं प्राप्त हुई।
 
देवनारायण की फड़ में 335 गीत हैं । जिनका लगभग | 1200 पृष्ठों में संग्रह किया गया है एवं लगभग 15000 पंक्तियाँ हैं । ये गीत परम्परागत भोपाओं को कण्ठस्थ याद रहते हैं । देवनारायण की फड़ राजस्थान की फड़ों में सर्वाधिक लोकप्रिय एवं सबसे बड़ी है ।
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* देव धणी
* साडू माता का लाल
* उदाउधा जी
*जय देवनारायण
*नारायण
*उदल
*देव दरबार
*ईटा का श्याम
 
== मंदिर ==
देवजी के चार प्रमुख देवरे चार धाम कहलाते हैं
 
# '''गोठां दड़ावता''' ( आसीन्द, भीलवाड़ा)
# '''देवधाम जोधपुरिया''' ( निवाई , टोक )
# '''देवमाली''' ( अजमेर )
# '''देवडूंगरी''' ( चित्तौड़गढ़ )
#देव महाराज मंदिर ( पांचू डाला, जयपुर )
#देवनारायण जी मंदिर ( तालुकाबास उर्फ रघुनाथपुरा, जयपुर )
#देव नारायण मंदिर (भीमपुरा जयपुर)
 
'''देवनारायणजी जन्म - गोठांदड़ावता भीलवाड़ा''' : इनका भव्य मंदिर ''मालासेरी डूंगरी, तहसील आसीन्द जिला भीलवाड़ा राजस्थान'' में है। अवतार मालासेरी डूंगरी पर माता साडू की अखंड तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु देवनारायण के रूप में शंक सवंत 968 माघ महीने की छठ-सातम की शामी रात शनिवार को चट्टान फाड़कर कमल फूल की नाभि से अवतार लिया। उसी क्षण मालासेरी डूंगरी कुछ पलों के लिए पूरी सोने की हुई राजा इंद्र ने नन्हीं बूंदों से बरसात की और 33 करोड़ देवी देवताओं ने पुष्प वर्षा की। स्वर्ग से पांच कामधेनु गाय उत्तरी। देव जी के अवतार से 6 माह पूर्व भादवी छठ पर इसी डूंगरी पर एक अन्य सुरंग से देव जी के घोड़े लीलाधर का अवतार हुआ और इसी के पास एक और सुरंग से नाग वासक राजा का अवतार हुआ। जिस जगह कमल का फूल निकला उस जगह अनन्त सुरंग हे जो वर्तमान में उस सुरंग पर देवजीकी मूर्ति विराजमान हे ।
 
'''समाधि - देवमाली :''' अजमेर के देवमाली गांव में स्थित देवमाली मंदिर काफी प्रसिद्ध है। यह गुर्जर समाज के आराध्य देव भगवान देवनारायण की कर्म स्थली के रूप में जाना जाता है। इस मंदिर के प्रति गुर्जर समाज की एक अनोखी आस्था है। यहां पर इंसानों के साथ इंसानों के साथ ही चट्टानें भी भगवान को नमन करती हैं। माना जाता है कि उसके किनारे मौजूद ऊंची-ऊंची चट्टाने मंदिर की वजह से ही आज झुकी हुई हैं। पहाड़ी के पास स्थित इस मंदिर की स्थापना को लेकर कहा जाता है कि जब भगवान देवनारायण स्वर्ग से धरती पर आए थे इस जगह को उन्होंने सर्वप्रथम स्पर्श किया था।भगवान देवनारायण को प्रकृति से प्रेम होने की वजह से आज भी लोग यहां पर कच्चे घरों में रहना पसंद करते हैं। इतना ही नहीं यहां के लोग आधुनिकता से परहेज करते हैं। लोगों का मानना है कि इससे उन्हें एहसास होता है कि वह भगवान के घर में रह रहे हैं। लोगों का मानना है कि भगवान देवनारायण उनकी हर एक इच्छा को पूरा करते हैं।
 
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== विशेष ==
 
* देवजी के देवरों में इनकी प्रतिमा की जगह बड़ी ईंट की पूजा होती है ।
* देवनारायणजी को आयुर्वेदिक के ज्ञाता भी कहा जाता है।
* देवनारायणजी की फड़ सबसे प्राचीन सबसे लम्बी चित्रित फड़ है ।
* 1992 में इस फड़ पर डाक टिकट जारी हुआ।
 
'''आरती समय'''
 
# मंगल आरती प्रात : 4:00 बजे
# सूर्योदय आरती प्रात : 8:00 बजे
# श्रृंगार आरती दोपहर : 1:00 बजे
# गौधूलि आरती सांय : 7:00 बजे
 
== सन्दर्भ ==
{{Reflist}}
 
* देवनारायण फड़(Indira Gandhi National Centre for the Arts. Ministry of Culture, Govt. of India''')''' http://ignca.gov.in/coilnet/devn001.htm
* फेसबुक पेज ( श्री देव नारायण दरबार ) https://www.facebook.com/DEVNARAYANDARBAR.ORG/
* RBSE 9th book Social Science
* मालासेरी डूंगरी https://web.archive.org/web/20190702001941/http://www.devmalaseri.com/
* मगरा-मेरवाड़ा का इतिहास लेखक श्री प्रेम सिंह चौहान 1990
 
[[श्रेणी:राजस्थान के लोकदेवता]]
[[श्रेणी:राजस्थान की संस्कृति]]
[[ श्रेणी: मध्य्रदेश के इष्ट देवता]]