"चाँद बावड़ी": अवतरणों में अंतर

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== शिल्पकला का जीवंत नमूना [[आभानेरी]] की चाँद बावडी ==
जयपुर, राजस्थान के समीप आभानेरी गाँव में स्थित चाँद बावड़ी भारत की सबसे सुन्दर बावड़ी है। मैं तो इसे सर्वाधिक चित्रीकरण योग्य बावड़ी भी मानती हूँ।
यह १३ तल गहरी बावड़ी है। बावड़ी के भीतर, जल सतह तक पहुँचती सीड़ियों की सममितीय त्रिकोणीय संरचना देख आप दांतों तले उंगली दबा लेंगे। राजस्थान एक सूखा रेगिस्तानी प्रदेश होने के कारण यहाँ बावड़ियों का निर्माण सामान्य है। उत्क्रुष्ट जल प्रबंधन प्रणाली होने के साथ साथ ये बावड़ियाँ ग्रीष्म ऋतू में वातावरण में शीतलता भी प्रदान करती हैं। शोचनीय तथ्य यह है कि एक जल प्रबंधन प्रणाली को वास्तुशिल्पीय दृष्टी से इतना मनमोहक निर्मित करने के पीछे क्या हेतु था? कहीं ऐसा तो नहीं कि ९वी शताब्दी की सर्व सार्वजनिक संरचनाएं इतनी ही मनोहारी हुआ करती थीं और हमारी धरोहर स्वरुप कुछ ही शेष है? यदि यह सत्य है तो उस युग के भारत को विश्व का चमकता हीरा कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी।
 
जयपुर [[File:आभानेरी की 02.JPG|thumb|चाँद बावड़ी]]
आभानेरी चाँद बावड़ी का इतिहास
 
 
चाँद बावड़ी राजस्थान की तथा कदाचित सम्पूर्ण भारत की प्राचीनतम बावड़ी है जो अब भी सजीव है। भारत की इस सर्वाधिक गहरी बावड़ी का निर्माण क्षत्रिय प्रतिहार वंश के राजपूत सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार ने ८वी से ९वी शताब्दी में करवाया था। १२०० से १३०० वर्ष प्राचीन यह संरचना ताजमहल, खजुराहो के मंदिर तथा चोल मंदिरों से भी प्राचीन हैं किन्तु अजंता एवं एलोरा गुफाओं के शिल्पों से अपेक्षाकृत नवीन हैं।
 
आभा नगरी अर्थात् चमकने वाला नगर, जयपुर-आगरा मार्ग पर स्थित एक छोटा क़स्बा है जिसे राजा चाँद ने बसाया था। रोमांचक बावड़ियों एवं माता मंदिर हेतु प्रसिद्ध इस कस्बे का नाम कालान्तर में आभानेरी में परिवर्तित हो गया।
 
आईये ९वीं शताब्दी में निर्मित इस बावड़ी अर्थात् वाव या पुष्कर्णी के २१वी. शताब्दी के रूप से आपका परिचय कराती हूँ-
 
चाँद बावड़ी के दर्शन
 
इस आकर्षक बावड़ी के कई चित्र देखने के पश्चात मैं पहले ही इस पर मंत्रमुग्ध थी। इस अद्भुत बावड़ी के प्रत्यक्ष दर्शन करने के विचार से मन रोमांचित हो उठा था। एक ऊंचे मंडप से होकर इस बावड़ी के परिसर पर पहुँची। वहां कुछ स्त्रियाँ एक शिवलिंग की पूजा कर रही थीं। कुछ पग आगे चल कर जो दृश्य देखा मेरे रोंगटे खड़े हो गए। चित्रों में जिस आकर्षक बावड़ी को देखा था, प्रत्यक्ष में यह बावड़ी उससे कहीं अधिक भव्य एवं प्रभावशाली प्रतीत हुई। कुछ क्षण मंत्रमुग्ध होकर मैं उस बावड़ी को ताकती रही। सचेत होने पर बावड़ी का सूक्ष्मता से निरिक्षण आरम्भ किया।
 
== शिल्पकला का जीवंत नमूना [[आभानेरी]] की चाँद बावडी ==
 
[[File:[[आभानेरी]] 02.JPG|thumb|चाँद बावड़ी]]
 
'''कला, संस्कृति, इतिहास एवं पर्यटन क्षेत्रों की बात की जाये, तो भारत भूमि का मुकाबला तो दूर, कोई आस-पास भी खडा हुआ नजर नहीं आता। 'अतिथि देवो भवः' सभ्यता वाले हमारे देश में कदम-कदम पर ऐतिहासिक स्थल, विजय स्तम्भ, महल, मीनारें, बावडियाँ, हर स्थल से जुडी पौराणिक गाथा, हर एक स्थान का धार्मिक महत्त्व आदि देखने या सुनने में आता है। इन स्थानों पर लोगों को धर्म से जोडने के लिए अनेकों राजाओं ने मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरूद्वारे एवं अन्य धार्मिक स्थान बनाये हैं। इन धार्मिक-ऐतिहासिक स्थानों की उपस्थिति को अपने मन में बिठाकर लोग एक-दूसरे का सम्मान करते हैं एवं अपने बच्चों को भी इसी तरह की शिक्षा देते हैं।'''
==[[आभानेरी]]==
 
जयपुर-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-11) पर स्थित दौसा जिले का ह्रदय कहे जाने वाले सिकंदरा कस्बे से उत्तर की ओर कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, आभानेरी गाँव। पुरातत्व विभाग को प्राप्त अवशेषों से ज्ञात जानकारी के अनुसार आभानेरी गाँव 3000 वर्ष से भी अधिक पुराना हो सकता है, इसी गाँव में स्थित है "चाँद बावडी"।
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'''चाँद बावडी'''
 
9वीं शताब्दी में निर्मित इस बावडी का निर्माण राजा मिहिर भोज (जिन्हें कि चाँद नाम से भी जाना जाता था) ने करवाया था, और उन्हीं के नाम पर इस बावडी का नाम चाँद बावडी पडा। दुनिया की सबसे गहरी यह बावडी चारों ओर से लगभग 35 मीटर चौडी है तथा इस बावडी में ऊपर से नीचे तक पक्की सीढियाँ बनी हुई हैं, जिससे पानी का स्तर चाहे कितना ही हो, आसानी से भरा जा सकता है। 13 मंजिला यह बावडी 70100 फ़ीट से भी ज्यादा गहरी है, जिसमें भूलभुलैया के रूप में 13003500 सीढियाँ (अनुमानित) हैं। इसके ठीक सामने प्रसिद्ध हर्षद माता का मंदिर है। बावडी निर्माण से सम्बंधित कुछ किवदंतियाँ भी प्रचलित हैं जैसे कि इस बावडी का निर्माण भूत-प्रेतों द्वारा किया गया और इसे इतना गहरा इसलिए बनाया गया कि इसमें यदि कोई वस्तु गिर भी जाये, तो उसे वापस पाना असम्भव है।
 
[[File:आभानेरी 09.JPG|thumb|The Ancient Palace of Chand Baori]]
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चाँदनी रात में एकदम दूधिया सफ़ेद रंग की तरह दिखाई देने वाली यह बावडी अँधेरे-उजाले की बावडी नाम से भी प्रसिद्ध है। तीन मंजिला इस बावडी में नृत्य कक्ष व गुप्त सुरंग बनी हुई है, साथ ही इसके ऊपरी भाग में बना हुआ परवर्ती कालीन मंडप इस बावडी के काफ़ी समय तक उपयोग में लिए जाने के प्रमाण देता है। इसकी तह तक जाने के लिए 13 सोपान तथा लगभग 1300 सीढियाँ बनाई गई हैं, जो कि कला का अप्रतिम उदाहरण पेश करती हैं। स्तम्भयुक्त बरामदों से घिरी हुई यह बावडी चारों ओर से वर्गाकार है। इसकी सबसे निचली मंजिल पर बने दो ताखों पर महिसासुर मर्दिनी एवं गणेश जी की सुंदर मूर्तियाँ भी इसे खास बनाती हैं। बावडी की सुरंग के बारे में भी ऐसा सुनने में आता है कि इसका उपयोग युद्ध या अन्य आपातकालीन परिस्थितियों के समय राजा या सैनिकों द्वारा किया जाता था। लगभग पाँच-छह वर्ष पूर्व हुई बावडी की खुदाई एवं जीर्णोद्धार में भी एक शिलालेख मिला है जिसमें कि राजा चाँद का उल्लेख मिलता है।
चाँद बावडी एवं हर्षद माता मंदिर दोनों की ही खास बात यह है कि इनके निर्माण में प्रयुक्त पत्थरों पर शानदार नक्काशी की गई है, साथ ही इनकी दीवारों पर हिंदू धर्म के सभी 33 कोटीकरोड देवी-देवताओं के चित्र भी उकेरे गये हैं। बावडी की सीढियों को आकर्षक एवं कलात्मक तरीके से बनाया गया है और यही इसकी खासियत भी है कि बावडी में नीचे उतरने वाला व्यक्ति वापस उसी सीढी से ऊपर नहीं चढ सकता। आभानेरी गुप्त युग के बाद तथा आरम्भिक मध्यकाल के स्मारकों के लिए प्रसिद्ध है जिसके भग्नावशेष विदेशी आक्रमण के हमले में खण्डित होकर इधर-उधर फ़ैले हुए हैं।
 
[[File:आभानेरी 03.JPG|thumb|Harshad Mata Temple]]
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मंदिर के ठीक सामने बावडी होने का मतलब साफ़ है कि जो भी व्यक्ति मंदिर में प्रवेश करे, वह पहले अपने हाथ-मुँह धोए, उसके बाद मंदिर में प्रवेश करे। और यही हमारे देश की संस्कृति भी है कि जो भी व्यक्ति किसी धार्मिक स्थल में प्रवेश कर रहा है, उसका तन-मन शुद्ध होना चाहिए। कभी मंदिर में छह फ़ुट की नीलम पत्थर से बनी हुई हर्षद माता की मूर्ति हुआ करती थी जो कि सन् 1968 में चोरी हो गई थी। स्थानीय निवासियों से बात करने पर ऐसा भी पता चलता है कि माता गाँव पर आने वाले संकट के बारे में पहले ही चेतावनी दे दिया करती थी जिससे स्थानीय निवासी सतर्क हो जाते थे एवं परेशानियों का बखूबी सामना कर लिया करते थे। ऐसा भी सुनने में आता है कि 1021-26 के दौरान मोहम्मद गजनवी ने मंदिर एवं इसके परिसर में तोड-फ़ोड की तथा मूर्तियों को भी क्षतिग्रस्त कर दिया था। वे खण्डित मूर्तियाँ आज भी मंदिर एवं बावडी परिसर में सुरक्षित रखी हुई हैं। बाद में 18वीं सदी में जयपुर महाराजा ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था।
 
वर्तमान में चाँद बावडी एवं हर्षद माता मंदिर दोनों ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन हैं जिन्हें विभाग द्वारा चारों ओर से लोहे की मेड बनाकर संरक्षित किया गया है। साथ ही बावडी व मंदिर से सम्बंधित ऐतिहासिक जानकारियों के लिए बोर्ड भी लगाये गये हैं। सबसे अहम बात यह भी है कि यहाँ के निवासी भी पुरा सम्पदा का महत्त्व जानते हैं एवं हर्षद माता की वर्तमान मूर्ति (जिसे की पत्थर एवं सीमेंट से बनाया गया है), यहाँ के निवासियों ने ही प्रतिष्ठित करवाई थी।<ref>{{Cite web |url=http://simplyjaipur.in/#/FEBRUARY-2014/30 |title=संग्रहीत प्रति |access-date=13 अप्रैल 2015 |archive-url=https://web.archive.org/web/20150413023126/http://www.simplyjaipur.in/#/FEBRUARY-2014/30 |archive-date=13 अप्रैल 2015 |url-status=live }}</ref>
 
[[File:आभानेरी 13.JPG|thumb|The Heritage View of Chand Baori]]
 
==सन्दर्भ==
{{टिप्पणीसूची}}
{{टिप्पणीसूची}एक रात में तैयार हुई थी ये तीनो बावड़ी। :- भांडारेज की बावड़ी ( दौसा)राज.
जी हाँ दौसा की चाँद बावड़ी की तरह ये बावड़ी भी कहते है कि एक रात में ही बनी थी। इतना ही नहीं ये भी कहते है कि चाँद बावड़ी , आलूदा की बावड़ी और भांडारेज की बावड़ी तीनो को ही एक रात में बनाया गया और ये तीनो सुरंग से एक-दूसरे से जुड़ी हैं।
 
[[श्रेणी:बावड़ी]]