"बौद्ध संगीति": अवतरणों में अंतर

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छो बौद्ध ग्रंथों में वर्णित साक्ष्य पर
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महात्मामार्गदाता बुद्ध के परिनिर्वाण के अल्प समय के पश्चात से ही उनके उपदेशों को संगृहीत करने, उनका पाठ (वाचन) करने आदि के उद्देश्य से संगीति (सम्मेलन) की प्रथा चल पड़ी। इन्हें धम्म संगीति (धर्म संगीति) कहा जाता है। संगीति का अर्थ है 'साथ-साथ गाना'।[1]
 
इन संगीतियों की संख्या एवं सूची, अलग-अलग सम्प्रदायों (और कभी-कभी एक ही सम्प्रदाय के भीतर ही) द्वारा अलग-अलग बतायी जाती है। एक मान्यता के अनुसार बौद्ध संगीति निम्नलिखित हैं-
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प्रथम बौद्ध संगीति (थेरवाद के अनुसार ५४३ - ५४२ ईसापूर्व) -- राजगृह में
द्वित्तीय बौद्ध संगीति (४थी शताब्दी ईसा पूर्व) --
तृतीय बौद्ध संगीति (२५० ईसा पूर्व) --पाटलिपुत्र में
चतुर्थ बौद्ध संगीति ( -- ये दो स्थानो पर हुई थी।)
पंचम बौद्ध संगीति (थेरवाद बौद्ध संगीति (१८७१))