"नूह (सूरा)": अवतरणों में अंतर

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{{स्रोतहीन|date=जून 2015}}
{{क़ुरआन}}
सूरा '''अन-नूह''' ([[इंग्लिश]]: Nūḥ) [[इस्लाम]] के पवित्र ग्रन्थ [[क़ुरआन|कुरआन]] का 71 वां अध्याय ([[सूरा]] (अध्याय) है। इसमें 28 [[आयत (क़ुरआन)|आयतें]] हैं।
=नाम=
इस सूरा के [[अरबी भाषा]] के नाम को क़ुरआन के प्रमुख हिंदी अनुवाद में सूरा '''नूह''' <ref>{{cite book |last1=सूरा नूह,(अनुवादक: मौलाना फारूक़ खाँ) |first1=भाष्य: मौलाना मौदूदी |title=अनुदित क़ुरआन - संक्षिप्त टीका सहित |page=902 से |url=https://archive.org/details/TranslationOfTheMeaningsOfTheNobleQuranInTheHindipdf}}</ref>और प्रसिद्ध किंग फ़हद प्रेस के अनुवाद में भी सूरा '''नूह़'''<ref>{{cite web |title=सूरा अल्-मआ़रिज का अनुवाद (किंग फ़हद प्रेस) |url=https://quranenc.com/en/browse/hindi_omari/71 |website=https://quranenc.com |access-date=16 जुलाई 2020 |archive-url=https://web.archive.org/web/20200622083734/https://quranenc.com/en/browse/hindi_omari/71 |archive-date=16 जुलाई 2020 |url-status=live }}</ref>
नाम दिया गया है।
 
नाम "नूह" इस सूरा का नाम भी है और विषय की दृष्टि से इसका शीर्षक भी, क्योंकि इसमें प्रारम्भ से अंत तक हज़रत नूह (अलै.) ही का क़िस्सा बयान किया गया है।
=अवतरणकाल=
{{मुख्य|सूरा|सूरा=}}
[[मक्कन सूरा|मक्की सूरा]] अर्थात पैग़म्बर [[मुहम्मद]] के मदीना के निवास के समय [[हिजरत]] से पहले अवतरित हुई।
 
यह भी मक्का मुअज़्ज़मा के आरम्भिक काल की अवतरित सूरतों में से है, जब अल्लाह के रसूल (सल्ल.) के आह्वान और प्रचार के मुक़ाबले में मक्का के काफ़िरों(इन्कार करने वालों) का विरोध बड़ी हद तक प्रचण्ड रूप धारण कर चुका था।
=विषय और वार्ता=
[[इस्लाम]] के '''विद्वान''' [[मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी]] लिखते हैं कि
इसमें हज़रत नूह (अलै.) का क़िस्सा मात्र कथा-वाचन के लिए बयान नहीं किया गया है, बल्कि इससे अभीष्ट मक्का के काफ़िरों (इनकार करने वालों) को सावधान करना है कि तुम मुहम्मद (सल्ल.) के साथ वही नीति अपना रहे हो जो हज़रत नूह (अलै.) के साथ उनकी जाति के लोगों ने अपनाई थीं। इस नीति को तुमने त्याग न दिया तो तुम्हें भी वही परिणाम देखना पड़ेगा जो उन लोगों ने देखा था। पहली आयत में बताया गया है कि हज़रत नूह (अलै.) को जब अल्लाह ने पैग़म्बरी के पद पर आसीन किया था, उस समय क्या सेवा उन्हें सौंपी गई थी।
 
आयत 2 से 4 तक में संक्षिप्त रूप से यह बताया गया है कि उन्होंने अपने आह्वान का आरम्भ किस तरह किया और अपनी जाति के लोगों के समक्ष क्या बात रखी। फिर दीर्घकालों तक आह्वान एवं प्रसार के कष्ट उठाने के पश्चात् जो वृत्तान्त हज़रत नूह (अलै.) ने अपने प्रभु की सेवा में प्रस्तुत किया, वह आयत 5 से 20 तक में वर्णित है। तदन्तर हज़रत नूह (अलै.) का अन्तिम निवेदन आयत 21 से 25 तक में अंकित है जिसमें वे अपने प्रभु से निवेदन करते हैं कि यह जाति मेरी बात निश्चित रूप से रद्द कर चुकी है। अब समय आ गया है कि इन लोगों को मार्ग पाने के दैवयोग से वंचित कर दिया जाए। यह हज़रत नूह (अलै.) की ओर से किसी अधैर्य का प्रदर्शन न था, बल्कि सैकड़ों वर्ष तक अत्यन्त कठिन परिस्थितियों में सत्य के प्रचार के कर्तव्य का निर्वाह करने के पश्चात् जब वे अपनी जाति के लोगों से पूर्णतः निराश हो गए तो उन्होंने अपनी यह धारणा बना ली कि अब इस जाति के सीधे मार्ग पर आने की कोई सम्भावना शेष नहीं है। यह विचार ठीक-ठीक वही था जो स्वयं अल्लाह का अपना निर्णय था। अतएव संसर्गतः इसके पश्चात् आयत 25 में कहा गया है कि उस जाति पर उसकी करतूतों के कारण ईश्वरीय यातना अवतरित हुई।
 
अन्त की आयतों में हज़रत नूह (अलै.) की वह प्रार्थना प्रस्तुत की गई है जो उन्होंने ठीक यातना के उतरने के समय अपने प्रभु से थी। इसमें वे अपने लिए और सब ईमानवालों के लिए मुक्ति की प्रार्थना करते हैं, और अपनी जाति के काफ़िरों के विषय में अल्लाह से निवेदन करते हैं कि उनमें से किसी को धरती पर बसने के लिए जीवित न छोड़ा जाए , क्योंकि उनमें अब कोई भलाई शेष नहीं रही। उनके वंशज में से जो भी उठेगा, काफ़िर और दुराचारी ही उठेगा। इस सूरा का अध्ययन करते हुए हज़रत नूह (अलै.) के क़िस्से के वे विस्तृत वर्णन दृष्टि में रहने चाहिएँ जो इससे पहले कुरआन मजीद में वर्णिय हो चुके हैं। (देखिए कुरआन -7 : 59-64 , 10 : 71-73 , 11 : 25-49 , 23 : 23-31 , 26 : 105-122 , 29 : 14-15 , 37 : 75-82 , 54 : 9-16)
=सुरह "अन-नूह'' का अनुवाद=
बिस्मिल्ला हिर्रह्मा निर्रहीम
'''अल्लाह के नाम से जो दयालु और कृपाशील है।'''
{{मुख्य|बिस्मिल्लाह|बिस्मिल्लाह=}}
{{मुख्य|क़ुरआन का हिन्दी अनुवाद|क़ुरआन का हिन्दी अनुवाद=}}
इस सूरा का '''प्रमुख अनुवाद''':
 
क़ुरआन की मूल भाषा '''अरबी से उर्दू''' अनुवाद "मौलाना मुहम्मद फ़ारूक़ खान", '''उर्दू से हिंदी''' <ref>{{cite web |title=Nūḥ सूरा का अनुवाद |url=http://tanzil.net/#trans/hi.farooq/71:1 |website=http://tanzil.net |access-date=15 जुलाई 2020 |archive-url=https://web.archive.org/web/20180425183153/http://tanzil.net/#trans/hi.farooq/71:1 |archive-date=25 अप्रैल 2018 |url-status=live }}</ref>"मुहम्मद अहमद" ने किया।
=बाहरी कडियाँ=
इस सूरह का प्रसिद्ध अनुवादकों द्वारा किया अनुवाद क़ुरआन प्रोजेक्ट पर देखें
*[https://web.archive.org/web/20191211192707/https://www.islamawakened.com/quran/71/1/default.htm Nūḥ 71:1]
 
*[https://www.australianislamiclibrary.org/quran-translations.html क़ुरआन के अनुवाद 92 भाषाओं में ] <ref>{{cite web |title=Quran Text/ Translation - (92 Languages) |url=https://www.australianislamiclibrary.org/quran-translations.html |website=www.australianislamiclibrary.org |access-date=15 March 2016 |archive-url=http://web.archive.org/web/20200730204334/https://www.australianislamiclibrary.org/quran-translations.html |archive-date=30 May 2020 |url-status=live }}</ref>
 
 
==यह भी देखें==
{{सूरा|71 - [[नूह (सूरा)|नूह]]|[[अल-मआरिज]]|[[अल-जिन्न]]}}
 
==सन्दर्भ==
{{टिप्पणीसूची}}
{{सन्दर्भ}}
 
==यहइन्हें भी देखें==
*[[क़ुरआन]]
*[[मुहम्मद]]
*[[क़ुरआन का हिन्दी अनुवाद]]
*[[सूरा]]
*[[आयत (क़ुरआन)]]
*[[इस्लामी शब्दावली]]
 
 
[[श्रेणी:सूरा]]