"पीलिया": अवतरणों में अंतर

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[[रक्त]]रस में [[पित्तरंजक]] (Billrubin) नामक एक रंग होता है, जिसके आधिक्य से त्वचा और श्लेष्मिक कला में पीला रंग आ जाता है। इस दशा को '''कामला''' या '''पीलिया''' ([https://web.archive.org/web/20200605051451/https://www.fitnessayurveda.online/2020/06/Jaundice-home-remedies.html '''कामला''' या '''पीलिया''' (Jaundice]) कहते हैं।]
 
सामान्यत: रक्तरस में पित्तरंजक का स्तर 1.0 प्रतिशत या इससे कम होता है, किंतु जब इसकी मात्रा 2.5 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है तब कामला के लक्षण प्रकट होते हैं। कामला स्वयं कोई रोगविशेष नहीं है, बल्कि कई रोगों में पाया जानेवाला एक [[लक्षण]] है। यह लक्षण नन्हें-नन्हें बच्चों से लेकर 80 साल तक के बूढ़ों में उत्पन्न हो सकता है। यदि पित्तरंजक की विभिन्न उपापचयिक प्रक्रियाओं में से किसी में भी कोई दोष उत्पन्न हो जाता है तो पित्तरंजक की अधिकता हो जाती है, जो कामला के कारण होती है।
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पीलिया रोग के कारण हैः-
 
[https://www.fitnessayurveda.online/2020/04/blog-post_26.html रोगी को बुखार रहना।]
 
भूख न लगना।