"ॐ": अवतरणों में अंतर
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[[Image:Om symbol.svg|right|thumb|300px|देवनागरी में '''ॐ''']]
[[चित्र:Ganesha-aum.jpg|right|thumb|300px|'''ॐ'''-आकार में गणेश का चित्र]]
[[चित्र:Kannada OM.png|thumb|right|100px|[[कन्नड़ भाषा|कन्नड]] में ओ३म]]
[[चित्र:Tamil om.png|thumb|right|100px|[[तमिल भाषा|तमिळ]] में ओम]]
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[[चित्र:Bali Omkara Red.png|right|thumb|150px|[[बाली भाषा]] में ओंकार]]
'''ओ३म्''' ('''ॐ''') या '''ओंकार''' का नामान्तर [[ॐ|प्रणव]] है। यह [[
== परिचय ==
▲” ब्रह्मप्राप्ति के लिए निर्दिष्ट विभिन्न साधनों में प्रणवोपासना मुख्य है। [[मुण्डकोपनिषद्]] में लिखा है:
: ''प्रणवो धनु:शरोह्यात्मा ब्रह्मतल्लक्ष्यमुच्यते।
: ''अप्रमत्तेन वेद्धव्यं शरवत्तन्मयो भवेत् ॥
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तंत्र शास्त्र में इस प्रकार का मात्राविभाग नौ नादों की सूक्ष्म योगभूमियां के नाम से प्रसिद्ध है। इस प्रसंग में यह स्मरणीय है कि बिंदु अशेष वेद्यों के अभेद ज्ञान का ही नाम है और नाद अशेष वाचकों के विमर्शन का नाम है। इसका तात्पर्य यह है कि अ, उ और म प्रणव के इन तीन अवयवों का अतिक्रमण करने पर अर्थतत्व का अवश्य ही भेद हो जाता है। उसका कारण यह है कि यहाँ योगी को सब पदार्थो के ज्ञान के लिए सर्वज्ञत्व प्राप्त हो जाता है एवं उसके बाद बिंदुभेद करने पर वह उस ज्ञान का भी अतिक्रमण कर लेता है। अर्थ और ज्ञान इन दोनों के ऊपर केवल नाद ही अवशिष्ट रहता है एवं नाद की नादांत तक की गति में नाद का भी भेद हो जाता है। उस समय केवल कला या शक्ति ही विद्यमान रहती है। जहाँ शक्ति या चित् शक्ति प्राप्त हो गई वहाँ ब्रह्म का प्रकाशमान होना स्वत: ही सिद्ध है।
इस प्रकार प्रणव के सूक्ष्म उच्चारण द्वारा विश्व का भेद होने पर विश्वातीत तक सत्ता की प्राप्ति हो जाती है। स्वच्छंद तंत्र में यह दिखाया गया है कि ऊर्ध्व गति में किस प्रकार कारणों का परित्याग होते होते अखंड पूर्णतत्व में स्थिति हो जाती है।
इसी को परमपद या परमशिव की प्राप्ति समझना चाहिए और इसी को एक प्रकार से उन्मना का त्याग भी माना जा सकता है। इस प्रकार ब्रह्मा से शिवपर्यन्त छह कारणों का उल्लंघन हो जाने पर अखंड परिपूर्ण सत्ता में स्थिति हो जाती है।
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गुरु नानक जी का शब्द '''एक ओंकार सतनाम''' बहुत प्रचलित तथा शत्प्रतिशत सत्य है। ''एक ओंकार ही सत्य नाम है।'' राम, कृष्ण सब फलदायी नाम ओंकार पर निहित हैं तथा ओंकार के कारण ही इनका महत्व है। बाँकी नामों को तो हमने बनाया है परंतु ओंकार ही है जो स्वयंभू है तथा हर शब्द इससे ही बना है। हर ध्वनि में ओउ्म शब्द होता है।<ref>[http://navbharattimes.indiatimes.com/-/---/articleshow/11365876.cms एक ओंकार सतनाम]</ref>
=== महत्व तथा लाभ ===
ओउ्म तीन शब्द 'अ' 'उ' 'म' से मिलकर बना है जो त्रिदेव [[ब्रह्मा]], [[विष्णु]] और [[शिव|महेश]] तथा त्रिलोक '''भूर्भुव: स्व:''' भूलोक भुव: लोक तथा स्वर्ग लोक का प्रतीक है।<ref>[http://hindi.webdunia.com/%E0%A5%90-%E0%A4%89%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A3-%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AF/%E0%A5%90-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%89%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A3-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AF-1100707063_1.htm त्रिदेव तथा त्रैलोक्य का प्रतीक।]</ref>
=== लाभ ===
पद्माशन में बैठ कर इसका जप करने से मन को शांति तथा एकाग्रता की प्राप्ति होती है, वैज्ञानिकों तथा ज्योतिषियों को कहना है कि ओउ्म तथा एकाक्षरी मंत्र<ref>ओउ्म, यं, रं, वं, सं, शं, षं, हं, फट् आदि जिसमें अं की मात्रा का उपयोग हो वह मंत्र एकाक्षरी मंत्र होता है।</ref> का पाठ करने में दाँत, नाक, जीभ सब का उपयोग होता है जिससे हार्मोनल स्राव कम होता है तथा ग्रंथि स्राव को कम करके यह शब्द कई बीमारियों से रक्षा तथा शरीर के सात चक्र (कुंडलिनी) को जागृत करता है।<ref>
== विवेचना ==
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: ''उस ईश्वर का वाचक प्रणव 'ॐ' है।
अक्षरका अर्थ जिसका कभी क्षरण न हो। ऐसे तीन अक्षरों— अ उ और म से मिलकर बना है ॐ। माना जाता है कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्डसे सदा ॐ की ध्वनी निसृत होती रहती है। हमारी और आपके हर श्वास से ॐ की ही ध्वनि निकलती है। यही हमारे-आपके श्वास की गति को नियंत्रित करता है। माना गया है कि अत्यन्त पवित्र और शक्तिशाली है ॐ। किसी भी मंत्र से पहले यदि ॐ जोड़ दिया जाए तो वह पूर्णतया शुद्ध और शक्ति-सम्पन्न हो जाता है। किसी देवी-देवता, ग्रह या ईश्वर के मंत्रों के पहले ॐ लगाना आवश्यक होता है, जैसे, श्रीराम का मंत्र — ॐ रामाय नमः, विष्णु का मंत्र — ॐ विष्णवे नमः, शिव का मंत्र — ॐ नमः शिवाय, प्रसिद्ध हैं। कहा जाता है कि ॐ से रहित कोई मंत्र फलदायी नहीं होता, चाहे उसका कितना भी जाप हो। मंत्र के रूप में मात्र ॐ भी पर्याप्त है। माना जाता है कि एक बार ॐ का जाप हज़ार बार किसी मंत्र के जाप से महत्वपूर्ण है। ॐ का दूसरा नाम '''प्रणव''' (परमेश्वर) है। "तस्य वाचकः प्रणवः" अर्थात् उस परमेश्वर का वाचक प्रणव है। इस तरह प्रणव अथवा ॐ एवं
[[छांदोग्य उपनिषद|छान्दोग्योपनिषद्]] में ऋषियों ने गाया है -
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: ''सिद्धयन्ति अस्य अर्थाः सर्वकर्माणि च
[[श्रीमद्भगवद्गीता|श्रीमद्भागवत्]] में ॐ के महत्व को कई बार रेखांकित किया गया है। इसके आठवें अध्याय में उल्लेख मिलता है कि जो ॐ अक्षर रूपी
ॐ अर्थात् ओउम् तीन अक्षरों से बना है, जो सर्व विदित है। अ उ म्। "अ" का अर्थ है आर्विभाव या उत्पन्न होना, "उ" का तात्पर्य है उठना, उड़ना अर्थात् विकास, "म" का मतलब है मौन हो जाना अर्थात् "ब्रह्मलीन" हो जाना। ॐ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और पूरी सृष्टि का द्योतक है। ॐ में प्रयुक्त "अ" तो सृष्टि के जन्म की ओर इंगित करता है, वहीं "उ" उड़ने का अर्थ देता है, जिसका मतलब है "ऊर्जा" सम्पन्न होना। किसी ऊर्जावान मंदिर या तीर्थस्थल जाने पर वहाँ की अगाध ऊर्जा ग्रहण करने के बाद व्यक्ति स्वप्न में स्वयं को आकाश में उड़ता हुआ देखता है। मौन का महत्व ज्ञानियों ने बताया ही है। अंग्रजी में एक उक्ति है — "साइलेंस इज़ सिल्वर ऍण्ड ऍब्सल्यूट साइलेंस इज़ गोल्ड"। श्री गीता जी में
: ''मौनं चैवास्मि गुह्यानां
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:''ओमिति ब्राह्मणः प्रवक्ष्यन्नाह ब्रह्मोपाप्नवानीति ब्रह्मैवोपाप्नोति ॥ १ ॥
अर्थातः- ॐ ही
:''सर्वे वेदा यत्पदमामनन्ति
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:''अप्रमत्तेन वेद्धव्यं शरवत्तन्मयो भवेत॥ -- ( [[मुण्डकोपनिषद्]], मुनण्डक २, खण्ड २, श्लोक-४)
अर्थातः- प्रणव धनुषहै, (सोपाधिक) आत्मा बाण है और
: ''ओमित्येतदक्षरमिदंसर्व तस्योपव्याख्यानं भूत,
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== बाहरी कड़ियाँ ==
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* [http://forum.spiritualindia.org/धर्मों-में-ॐ-उच्चारण-का-महत्व-t21830.0.html धर्मों में ॐ उच्चारण का महत्व]
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[[श्रेणी:हिन्दू धर्म]]
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