"अस्पृश्यता": अवतरणों में अंतर

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[[भारत की संस्कृति|भारतीय संस्कृति]] का मूलमंत्र 'मानव-जाति से प्यार' ऊँच-नीच की भावना रूपी हवा के झोंके से यत्र-तत्र बिखर गया। ऊँच-नीच का भाव यह रोग है, जो समाज में धीरे धीरे पनपता है और सुसभ्य एवं सुसंस्कृत समाज की नींव को हिला देता है। परिणामस्वरूप मानव-समाज के समूल नष्ट होने की आशंका रहती है। अतः अस्पृश्यता मानव-समाज के लिए एक भीषण कलंक है। अस्पृश्यता की उत्पत्ति और उसकी ऐतिहासिकता पर अब भी बहस होती है। [[भीमराव आम्बेडकर]] का मानना था कि अस्पृश्यता कम से कम 400 ई. से है<ref>{{cite book |title=Dr. Babasaheb Ambedkar, Writings and Speeches, Volume 7 |url=https://books.google.com/?id=vYhDAAAAYAAJ|last1=Ambedkar|first1=Bhimrao Ramji|last2=Moon|first2=Vasant|year=1990}}</ref> आज संसार के प्रत्येक क्षेत्र में चाहे वह राजनीतिक हो अथवा आर्थिक, धार्मिक हो या सामाजिक, सर्वत्र अस्पृश्यता के दर्शन किए जा सकते हैं। [[संयुक्त राज्य अमेरिका|अमेरिका]], [[इंग्लैण्ड|इंग्लैंड]], जापान आदि यद्यपि वैज्ञानिक दृष्तिकोण से विकसित और संपन्न देश हैं किंतु अस्पृश्यता के रोग में वे भी ग्रसित हैं।{{Citation needed}} अमेरिका जैसे महान राष्ट्र में काले एवं गोरें लोगों का भेदभाव आज भी बना हुआ है।
[[चित्र:Untouchability in India.png|अंगूठाकार|अस्पृश्यता]]
 
जन अधिकार सुरक्षा अधिनियम 1955
यह अधिनियम निम्नलिखित को अपराध मानता है-
1. किसी व्यक्ति को सार्वजनिक पूजा स्थल में प्रवेश से रोकने या कहीं पर पूजा से रोकना.
2. परंपरागत,धार्मिक, दार्शनिक या अन्य आधार पर 'अस्पृश्यता' को न्यायोचित ठहराना.
3. किसी दुकान, होटल या सार्वजनिक मनोरंजन स्थल में प्रवेश से इनकार करना.
4- अस्पृश्यता के आधार पर अनुसूचित जाति की किसी व्यक्ति को बेइज्जती करना.
5- अस्पतालों' शैक्षणिक संस्थानों या हॉस्टल में सार्वजनिक हित के लिए प्रवेश से रोकना।
6. प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अस्पृश्यता को मानना .
7-किसी व्यक्ति को सामान बिक्री या सेवाएं देने से रोकना.
उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद -17 के तहत यह व्यवस्था दी है कि यह अधिकार निजी व्यक्ति और राज्य का संवैधानिक दायित्व होगा कि इस अधिकार के हनन को रोकने के लिए जरूरी कदम उठाए.
श्रोत-भारत की राजव्यवस्था एम0लक्ष्मीकांत
पृष्ठ7.9
 
==कारण==