"शक्ति (देवी)": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
No edit summary |
No edit summary |
||
पंक्ति 1:
[[चित्र:Durga Mahisasuramardini.JPG|right|thumb|300px|[[दुर्गा]] के रूप में शक्ति]]
'''शक्ति''', निर्गुण और निराकार [[ईश्वर]] की चेतना है जो स्वयं इच्छा बनकर सब काम करनेवाली और [[सृष्टि]]रचना करनेवाली मानी जाती है। यह अनंतरूपा और अनंतसामर्थ्यसंपन्ना कही गई है। यही शक्ति जगत्रूप में व्यक्त होती है और [[प्रलय]]काल में समग्र चराचर जगत् को अपने में विलीन करके अव्यक्तरूपेण स्थित रहती है। यह जगत् वस्तुत: उसकी व्यवस्था का ही नाम है।
शक्ति जब माया और गुणो से पृथक होती है तब वह निर्गुण [[आदिशक्ति]] है।
[[श्रीमद्भगवद्गीता|गीता]] में वर्णित माया शक्ति है जो व्यक्त और अव्यक्त रूप में हैं। [[शिव]] शक्तिहीन होकर कुछ नहीं कर सकते। शक्तियुक्त शिव ही सब कुछ करने में, न करने में, अन्यथा करने में समर्थ होते हैं। इस तरह [[भारतीय दर्शन|भारतीय दर्शनों]] में किसी न किसी नाम रूप से इसकी चर्चा है। [[पुराण|पुराणों]] में विभिन्न [[देवता]]ओं की विभिन्न शक्तियों की कल्पना की गई है। इन शक्तियों को बहुधा [[देवी]] के रूप में और मूर्तिमती माना गया है। जैसे, [[विष्णु]] की कीर्ति, कांति, तुष्टि, पुष्टि आदि; [[रुद्र]] की गुणोदरी, गोमुखी, दीर्घजिह्वा, ज्वालामुखी आदि। [[मार्कण्डेय पुराण|मार्कण्डेयपुराण]] के अनुसार समस्त देवताओं की तेजोराशि देवी शक्ति के रूप में कही गई है जिसकी शक्ति वैष्णवी, माहेश्वरी, ब्रह्माणी, कौमारी, नारसिंही, इंद्राणी, वाराही आदि हैं। उन देवों के स्वरूप और गुणादि से युक्त इनका वर्णन प्राप्त होता है।
|