"अस्पृश्यता": अवतरणों में अंतर

छो छुवाछूत कभी भारतीय समाज में नही रहा ये केवल वामपंथीओ का एक प्रोपेगेंडा है।
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छुवाछुत को कुछ लोगो ने भारतीय समाज को तोड़ने का एक साधन बना लिया है।लेकिन छुवाछुत है क्या वास्तव में और इसे कहा से उठा लिया गया इस पर ध्यान देना अति महत्वपूर्ण है मुख्य रूप से भारत में जो लोग चमड़े का काम करते थे उन्हें बस्ती से दूर बसाया जाता था चूँकि संक्रमण फ़ैलने का डर रहता है ये तो आज की साइंस ने भी प्रूफ किया है और कोरोना जैसी महामारी ने तो हमे भली भांति समझा दिया है अब कोई नही कहता की ये छुवाछुत है।खैर हम अपनी विषय पर आते है इसी चमड़े का अपभ्रंस बना चरमर उसी का अब चमार हो गया इसी को अंग्रेजो और वामपंथीओ ने उठाकर बहुत प्रचार किया की यहा एक वर्ग के साथ छुवाछुत हो रहा है ।मै सबको चैलेंज करता हूँ की 1200 ईस्वी से पूर्व कोई छुवाछुत का एक उदाहरण दे दे ।इसलिए ये सब भारत को तोड़ने की साजिस है जो पहले अंग्रेजो ने किया अब वामपंथी कर रहे है ।इसलिए अब हमे जागरूक होना पड़ेगा ।ऐसे लोगो को जवाब देना पड़ेगा।{{unreferenced section|date=अक्तोबर् 2018}}
 
'''अस्पृश्यता''' का शाब्दिक अर्थ है - '''न छूना'''। इसे सामान्य भाषा में 'छूआ-छूत' की समस्या भी कहते हैं। अस्पृश्यता का अर्थ है किसी वय्क्ति या समूह के सभी लोगों के शरीर को सीधे छूने से बचना या रोकना। ये मान्यता है कि अस्पृश्य या अछूत लोगों से छूने, यहाँ तक कि उनकी परछाई भी पड़ने से उच्च जाति के लोग 'अशुद्ध' हो जाते है और अपनी शुद्धता वापस पाने के लिये उन्हें पवित्र गंगा-जल में स्नान करना पड़ता है। [[भारत]] में अस्पृश्यता की प्रथा को अनुच्छेद १७ के अंतर्गत एक दंडनीय [[अपराध]] घोषित कर दिया गया है। अनुच्छेद १७ निम्नलिखित है-