"क्षपणक": अवतरणों में अंतर

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तपस्वी [[जैन धर्म|जैन]] श्रमणों को जैन ग्रंथों में '''क्षपणक''', क्षपण, क्षमण अथवा खबण कहा गया है। क्षपणक अर्थात कर्मों का क्षय करने वाला।<ref>{{cite book|title=श्रीमद्-बाणभट्ट-प्रणीतं हर्षचरितम्|url=http://books.google.co.in/books?id=MzliWzYz34wC|author=श्री मोहनदेव पन्त|publisher=मोतीलाल बनारसीदास|isbn=9788120826168|page=२९६|language=संस्कृत|access-date=18 अप्रैल 2014|archive-url=https://web.archive.org/web/20140419014559/http://books.google.co.in/books?id=MzliWzYz34wC|archive-date=19 अप्रैल 2014|url-status=live}}</ref>
 
[[महाभारत]] में नग्न जैन मूर्ति को क्षपणक कहा है। चाणक्यशतक में उल्लेख है कि जिस देश में नग्न क्षपणक रहते हो वहाँ धोबी का क्या काम ? (''नग्नक्षपणके देशे रजक किं करिष्यति ?'') राजा [[विक्रमादित्य]] की सभा में क्षपणक को एक रत्न बताया गया है। यह संकेत सिद्धसेन दिवाकर की ओर जान पड़ता है। [[मुद्राराक्षस]] नाटक में जीवसिद्धि क्षपणक को अर्हतों का अनुयायी बताया गया है। यह [[चाणक्य]] का अंतरंग मित्र था और ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शुभ-अशुभ नक्षत्रों का बखान करता था। [[बौद्ध धर्म|बौद्ध]] भिक्षु को 'भई क्षपणक' कहा गया है। [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] के आर्वाचीन [[कोश]]कारों ने मागध अथवा स्तुतिपाठक के अर्थ में इस शब्द का प्रयोग किया है।
 
== सन्दर्भ ==