"शिक्षा": अवतरणों में अंतर
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शिक्षा व्यक्ति की अंतर्निहित क्षमता तथा उसके [[व्यक्तित्व|व्यक्तित्त्व]] का विकसित करने वाली [[प्रक्रिया]] है। यही प्रक्रिया उसे समाज में एक वयस्क की भूमिका निभाने के लिए [[सामाजीकरण|समाजीकृत]] करती है तथा समाज के सदस्य एवं एक जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए व्यक्ति को आवश्यक [[ज्ञान]] तथा [[कौशल]] उपलब्ध कराती है। शिक्षा शब्द [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] भाषा की ‘शिक्ष्’ [[धातु]] में ‘अ’ [[प्रत्यय]] लगाने से बना है। ‘शिक्ष्’ का अर्थ है सीखना और सिखाना। ‘शिक्षा’ शब्द का अर्थ हुआ सीखने-सिखाने की क्रिया।
जब हम शिक्षा शब्द के प्रयोग को देखते हैं तो मोटे तौर पर यह दो रूपों में प्रयोग में लाया जाता है, व्यापक रूप में तथा संकुचित रूप में। '''
==शिक्षा पर विद्वानों के विचार==
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[[प्राचीन भारत]] में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ‘मुक्ति’ की चाह रही है ( ''सा विद्या या विमुक्तये / विद्या उसे कहते हैं जो विमुक्त कर दे'' )। बाद में जरूरतों के बदलने और समाज विकास से आई जटिलताओं से शिक्षा के उद्देश्य भी बदलते गए।
==
व्यवस्था की दृष्टि से देखें तो शिक्षा के तीन रूप होते हैं -
(1)
(2) निरौपचारिक शिक्षा
(3) अनौपचारिक शिक्षा
=== औपचारिक शिक्षा ===
वह शिक्षा जो विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में चलती हैं,
=== निरौपचारिक शिक्षा ===
▲वह शिक्षा जो विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में चलती हैं, [https://www.neweducator.in/2020/08/Aupcharik-shiksha-anaupcharik.html औपचारिक शिक्षा] कही जाती है। इस शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यचर्या और शिक्षण विधियाँ, सभी निश्चित होते हैं। यह योजनाबद्ध होती है और इसकी योजना बड़ी कठोर होती है। इसमें सीखने वालों को विद्यालय, महाविद्यालय अथवा विश्वविद्यालय की समय सारणी के अनुसार कार्य करना होता है। इसमें परीक्षा लेने और प्रमाण पत्र प्रदान करने की व्यवस्था होती है। इस शिक्षा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। यह व्यक्ति में ज्ञान और कौशल का विकास करती है और उसे किसी व्यवसाय अथवा उद्योग के लिए योग्य बनाती है। परन्तु यह शिक्षा बड़ी व्यय-साध्य होती है। इससे धन, समय व ऊर्जा सभी अधिक व्यय करने पड़ते हैं।
वह शिक्षा जो औपचारिक शिक्षा की भाँति विद्यालय, महाविद्यालय, और विश्वविद्यालयों की सीमा में नहीं बाँधी जाती है। परन्तु औपचारिक शिक्षा की तरह इसके उद्देश्य व पाठ्यचर्या निश्चित होती है, फर्क केवल उसकी योजना में होता है जो बहुत लचीली होती है। इसका मुख्य उद्देश्य सामान्य शिक्षा का प्रसार और शिक्षा की व्यवस्था करना होता है। इसकी पाठ्यचर्या सीखने वालों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर निश्चित की गई है। शिक्षणविधियों व सीखने के स्थानों व समय आदि सीखने वालों की सुविधानानुसार निश्चित होता है। प्रौढ़ शिक्षा, सतत् शिक्षा, खुली शिक्षा और दूरस्थ शिक्षा, ये सब निरौपचारिक शिक्षा के ही विभिन्न रूप हैं।
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इस शिक्षा द्वारा व्यक्ति की शिक्षा को निरन्तरता भी प्रदान की जाती है, उन्हें अपने-अपने क्षेत्र के नए-नए अविष्कारों से परिचित कराया जाता है और तत्कालीन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।
===
वह शिक्षा जिसकी कोई योजना नहीं बनाई जाती है; जिसके न उद्देश्य निश्चित होते हैं न [[पाठ्यचर्या]] और न शिक्षण विधियाँ और जो आकस्मिक रूप से सदैव चलती रहती है, उसे अनौपचारिक शिक्षा कहते हैं। यह शिक्षा मनुष्य के जीवन भर चलती है और इसका उस पर सबसे अधिक प्रभाव होता है। मनुष्य जीवन के प्रत्येक क्षण में इस शिक्षा को लेता रहता है, प्रत्येक क्षण वह अपने सम्पर्क में आए व्यक्तियों व वातावरण से सीखता रहता है। बच्चे की प्रथम शिक्षा अनौपचारिक वातावरण में घर में रहकर ही पूरी होती है। जब वह विद्यालय में औपचारिक शिक्षा ग्रहण करने आता है तो एक व्यक्तित्त्व के साथ आता है जो कि उसकी अनौपचारिक शिक्षा का प्रतिफल है।
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== बाहरी कड़ियाँ ==
* [https://web.archive.org/web/20160714111145/http://hi.vikaspedia.in/education/education-best-practices/93693f91594d93793e-91593e-92a94d93092494d92f92f '''शिक्षा'''] (विकासपीडिया)
* [https://web.archive.org/web/20120118222028/http://www.indg.gov.in/primary-education/best-practices/92c939941-92a94d93092493f92d93e-93893f92694d92793e902924-91594d92f93e-939948-90692a915947-938940916928947-915940-936948932940 बहु-प्रतिभा सिद्धांत - क्या है आपके सीखने की शैली]
* [https://web.archive.org/web/20080224041448/http://tdil.mit.gov.in/ggs/GyanGanga(HTML)/gyanganga/ttttt.htm ज्ञानगंगा]
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