"मुंडा विद्रोह": अवतरणों में अंतर

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== बिरसा की गिरफ्तारी और अंत ==
बिरसा मुंडा काफी समय तक तो पुलिस की पकड में नहीं आये थे, लेकिन एक स्थानीय गद्दार सरदार की वजह से 3 मार्च 1900 को गिरफ्तार हो गए। लगातार जंगलों में भूखे-प्यासे भटकने की वजह से वह कमजोर हो चुके थे। जेल में उन्हे खाना देने के बहने उन्हे जहर दिया गया। जिससे 9 जून 1900 को 8 बजे रांची जेल में जहर खाने से उनकी मृत्यु हो गई। लेकिन जैसा कि बिरसा कहते थे, आदमी को मारा जा सकता है, उसके विचारों को नहीं, बिरसा के विचार मुंडाओं और पूरी आदिवासी को को संघर्ष की राह दिखाते रहे। आज भी आदिवासियों के लिए बिरसा का सबसे बड़ा स्था्न है। परंतु उन्हें कुछ लोंग उन्हें हिन्दू धर्म के पुजारी कहा जता है। किंतु उसने आपने जिवन किसी प्रतिमा को पुजा करने का कोई शौक नहीं था। उसने ईसाई धर्म स्वीकर किया था। उसका नाम डेविट पुर्ती है। क्योंकि आदिवासी मुंडा जनजती आपने टोटेम है। जो कि टोटेम (पुर्ती) है। ईसाईयों के साथ हिन्दयों के बीच धर्म का आलोचना छेड़ जाने से आपना धर्म आलग बताया है। जो (बिरसाई धर्म) जो हिन्दुओं द्वारा दबया दिया है। परंतु आदिवासियों का आस्तितव बना रहे ये समझ कर आज ये ज़िक्र नहीं होती है।
 
== इन्हें भी देखें ==