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==[[पत्रकारिता]] की ==
 
डेमोक्रेसी और डिप्लोमेसी
डिप्लोमेसी के कदमों में दम तोड़ती डेमोक्रेसी , यही सच्चाई है दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की । सबकुछ होकर भी कुछ नहीं , सबकुछ पाकर भी खाली हाथ और सबकुछ कहकर भी निरुत्तर । जवाब सरकारों को देना चाहिए लेकिन आज़ादी से आज तक सरकारें अघोषित तानाशाही और अदृश्य तंत्र की व्यवस्था पर ही काम करती रहीं । जब जब भी इस देश में बदलाव लाने की कोशिशें हुई , तब तब नए नेताओं के साथ ही नई क्रांतियों का भी जन्म हुआ लेकिन सत्ता के तंत्र को तोड़ा नहीं जा सका और जनता को भी यह समझा दिया गया कि इसी तंत्र के तानेबाने में ही यह लोकतंत्र जीवित है । लोकतंत्र को संविधान से बाँधकर रखा जाना चाहिए लेकिन शायद संविधान को भी बदलाव की ज़रूरत पड़ने लगी और इसको भी कई बार बदला गया । ऐसे में हर बार देश के हुक्मरानों से अपनी बेहतरी के उम्मीद लगाए बैठा लोकतंत्र बेचारा बनकर रह गया । सत्ता की हनक में जब लोकतंत्र का गला घोंटा जाता है तब नौकरशाही राज़ करती है और इसका भरपूर फायदा उठाती है जबकि खुद को रहनुमा समझने वाले गफलत में ही वक्त गुज़ार देते हैं । हमारे देश की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि हम खुद ही ईमानदार नहीं हैं लेकिन दूसरों से इसकी पूरी उम्मीद करते हैं जबकि यह नामुमकिन है । देश का समूचा तंत्र एक नई क्रांति और बदलाव चाहता है लेकिन क्या हम खुद इसके लिए तैयार हैं , नहीं क्योंकि हम सत्ता को सर्वोपरि मानकर खुद को बेहद कमजोर बना चुके है और इसीलिए हमें यह हक मिलना भी नहीं चाहिए । जब हम खुद ही अपने कर्तव्यों से भागना शुरू कर देते हैं तो हमें हुक्मरानों और रहनुमाओं की ज़रूरत पड़ती है क्योंकि हमारी बुद्धि क्षीण हो जाती है । यही वो मुफीद वक्त होता है जब डिप्लोमेसी राजनेताओं की आँखें चकाचोंध से भरकर जनता को रंगीन सपनें दिखाती है और लोकतंत्र को अपने कदमों में बाँध लेती है क्योंकि उसका विरोध करनेवाला कोई नहीं होता । जब तक खुद नहीं जागोगे तब तक जनता और लोकतंत्र ऐसे ही बंधक बने रहेंगे ।
 
अतुल सिन्हा
 
== इन्ह==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/विधा" से प्राप्त