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स्रोतहीन
सन् १७०० ई.(1757 विक्रमी संवत) के आस-पास [[हिन्दी|हिंदी]] कविता में एक नया मोड़ आया। इसे विशेषत: तात्कालिक दरबारी संस्कृति और [[संस्कृत साहित्य]] से
इस काल में कई कवि ऐसे हुए हैं जो आचार्य भी थे और जिन्होंने विविध काव्यांगों के लक्षण देने वाले ग्रंथ भी लिखे। इस युग में शृंगार की प्रधानता रही। यह युग मुक्तक-रचना का युग रहा। मुख्यतया [[कवित्त]], [[सवैया|सवैये]] और [[दोहा|दोहे]] इस युग में लिखे गए।
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