"विज्ञापन": अवतरणों में अंतर
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प्रत्येक भाषा की अपनी भाषा संस्कृति होती है। उसकी शब्दावली, वाक्य रचना, मुहावरे आदि विशेष होते है। हिन्दी का भी अपना भाषा संस्कार है। विज्ञापन के वर्तमान रूप में पारंपारिकता के त्याग तथा आधुनिकता के स्वीकार की स्थिती देखी जा सकती है। उसमें केवल उत्पादक, उत्पादित वस्तु और उपभोक्ता ही नहीं आता, बल्कि जनसंचार के सभी माध्यम और यातायत के साधन भी आते हैं, ये सभी विज्ञापन के प्रसार में सहायक होते है।
हिन्दी के क्रियापदों के प्रयोग से विज्ञापनों में आधिक कह देने की क्षमता पैदा होती है। बिकाऊ है, जररत है, चाहते हो, आते हैं, जाते हैं, आइए जैसे शब्दों के प्रयोग से विज्ञापनों की अर्थवत्ता बढ़ती है। पत्र-पत्रिकाओं जैसे मुद्रित विज्ञापनों में प्रयोग की जानेवाली हिन्दी-शब्दावली माध्यम के परिवर्तन के साथ बदल जाती है। रेडियों में जहाँ ध्वन्यात्मक शब्दों का महत्व होता है वहीं टेलिविजन तथा सिनेमा में दृश्यात्मक क्रियापदों का प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए यदि मुद्रित रूप में ठंढी के दिनों में त्वचा को मुलायम रखने के लिए ’बोरोलीन लगाइए' जैसा विज्ञापन छपता है तो रेडियो के लिए - '
== विज्ञापन की आलोचना ==
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