"चतरा": अवतरणों में अंतर

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'''चतरा''' ({{lang-sat|ᱪᱟᱛᱨᱟ}}) [[भारत]] में [[झारखंड]] प्रान्त के [[चतरा जिला|चतरा जिले]] का मुख्यालय है। यह हजारीबाग, कोडरमा , पलामू, लोहरदगा और रॉंची से घिरा हुआ है, तथा [[बिहार]] राज्य की सीमा से सटा हुआ है। चतरा जंगलों से घिरा और हरियाली से भरपूर है। चतरा जिले में खनिज के साथ कोयला भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
 
[[झारखण्ड|झारखंड]] के उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल का प्रवेश द्वार कहे जाने वाला चतरा जिला की स्थापना 29 मई 1991 ईo में हुई थी। चतरा जिला की स्थापना हजारीबाग से विभाजित कर किया गया था. जिला का सीमावर्ती जिला रांची, हजारीबाग, पलामू व लातेहार हैं. चतरा जिला में 2 पर्यटन स्थल मां भद्रकाली मंदिर व मां कौलेश्वरी पर्वत है। जिले में दो अनुमंडल सिमरिया व चतरा है. जिला में 12 प्रखंड क्रमशः चतरा, सिमरिया, टंडवा, पत्थलगड़ा, कुंदा, प्रतापपुर, हंटरगंज, कान्हाचट्टी, इटखोरी, मयूरहंड, लावालौंग, गिधौर प्रखंड शामिल हैं. 154 पंचायत व 1474 गांव हैं। जिले से तीन एनएच 02, एनएच 99 व एनएच 100 गुजरता है. जिला में दो विधानसभा चतरा व सिमरिया है. चतरा संसदीय क्षेत्र झारखंड का सबसे छोटा हैं. चतरा लोकसभा में 5 विधानसभा आते हैं. जिसमें चतरा, सिमरिया, पांकी, लातेहार, मनिका विधानसभा शामिल हैं. जिले की साक्षरता दर 60.16% हैं। जिसमें पुरुष की साक्षरता दर 69.92 व महिला की साक्षरता दर 49.92 हैं. 4 अक्टूबर1857 ईo को चतरा के फांसीहारी तालाब के पास दो वीर सपूतों को फांसी दे दी गयी थी. जिसमें जयमंगल पांडेय व सूबेदार नादिर अली खां शमिल हैं. भारत स्वतंत्रता संग्राम में चतरा जिले की भूमिका हैं.हैं।
 
● नदियां:- दामोदर, बराकर, हेरुआ, महाने, निरंजने, बलबल, बक्सा
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* जिला शिक्षा अधीक्षक:- जितेंद्र सिन्हा
* सिविल सर्जन:- अरुण कुमार पासवान
 
 
1857 की क्रांति में चतरा का योगदान:-
 
1857 की क्रांति अंग्रेजी सत्ता के लिए भारत में एक महान चुनौती थी, जिसने ब्रिटिश सरकार को झकझोर दिया था. अंग्रेजो के दास्तान-ए-जुल्म को उतार फेंकने के लिए हजारो वीर बांकुरों ने अपने प्राणों की आहूति दे दी. हंसते-हंसते फांसी के तख्ते पर झूल गये. कहीं-कहीं पेडो पर लटका कर उन्हें फांसी दे दी गयी. अखिल भारतीय स्तर पर 1857 ई. में फांसी का पहला स्थल बैरकपुर (बंगाल) था, जहां आठ अप्रैल को मंगल पांडेय को फांसी दी गयी थी. मंगल पांडेय भारत माता के सम्मान की रक्षा के लिए शहीद हो गये. झारखंड प्रांत बलिदान में कब पीछे रहने वाला था. 12 जून 1857 ई. को स्वतंत्रता की चाह से ओत-प्रोत वीरों ने बढ-चढकर बलिदान की शपथ ली. मेजर मैक्टोनाल्ड की सेना ने क्रांति कर दी. मैक्टोनाल्ड ने निर्ममता पूर्वक इस क्रांति को कुचल दिया. आजादी के दीवानो को घोर यातनाएं दी गयी और क्रांतिकारियों को 16 जून 1857 ई. को फंसी पर लटका दिया गया. इस क्रांति की लपटें पूरे बिहार प्रांत में फैल गयी. तीन जुलाई 1857 ई. को पटना में विद्रोह हुआ और चार जुलाई को 16 क्रांतिकारियों को फांसी दे दी गयी. इस पुनीत पावन संघर्ष में चतरा की धरती कब पीछे रहने वाली थी. यहां भी स्वतंत्रता के दीवाने प्राण न्योछावर करने के लिए उतावले हो उठे. 1857 ई. के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में चतरा की भूमिका महत्वपूर्ण रही. दो अक्टूबर 1857 को यहां अंग्रेजी सेना को चुनौती दी गयी थी. निर्णायक युद्ध लडा गया था. अंग्रेजो की ओर से 320 सैनिक थे और क्रांतिकारियों की संख्या तीन हजार थी. युद्ध में 56 अंग्रेजी सैनिक मारे गये थे. इसमें 46 यूरोपियन व 10 सिख सैनिक थे. वहीं 150 क्रांतिकारियों ने भी अपने प्राणो की आहुति दी. 77 वीरों को एक ही गड्ढे में दफन कर दिया गया. चतरा के इतिहासकार डॉ0 मो. इफ्तेखार आलम बताते हैं कि सैकडो आजादी के दीवाने उस वक्त घायल हुए, हरजीवन तालाब (अब मंगल तालाब, शहीद पार्क) का क्षेत्र लाशो से पट गया. संपूर्ण बिहार में आजादी की लडाई के इतिहास में इस प्रकार की नृशंस हत्या की घटना दुर्लभ है. उन्होंने बताया कि रांची में 20 व 24 अक्टूबर 1857 को 23 साहसी सैनिको को फंसी दी गयी. कुल मिलाकर 43 फौजियों की हत्या की गयी. तीन अक्टूबर 1857 ई. को चतरा में डेढ सौ सैनिक मारे गये थे. 4 अक्टूबर को सूबेदार जयमगल पांडेय (छपरा निवासी कुंज पांडेय के पुत्र) व नादिर अली खां को 1857 ई. की गदर की धारा 17 के अनुसार फांसी दे दी गयी. जहां दो दिन पूर्व उन्होंने अपने शौर्य व पराक्रम का परिचय दिया था. इस प्रकार चतरा में 77 क्रांतिकारियों को एक ही गड्ढे में दफन कर दिया गया. जबकि 77 क्रांतिकारियों को आम के पेड पर लटका दिया गया. चार अक्टूबर 1857 को काली पहाडी कैंप के पास चतरा का युद्ध निर्णायक था. भारतीय वीरों ने विशेष कर जयमंगल पांडेय व नादिर अली खां ने इस जंग में अंग्रेजो के छक्का छुडा दिये थे. नयी तकनीकी तोप, गोला व बारूद के बावजूद पुराने पारंपरिक हथियारो से हमारे वीरों ने अंग्रेजो के हौसले पस्त कर दिये थे. डॉ0 आलम कहतें हैं कि संघर्ष में 56 सरकारी सैनिक मारे गये थे. वहीं अनेक ब्रिटिश सैनिक घायल हुए थे. चार सैनिक गंभीर रूप से घायल हुए थे. सौ से अधिक घायल सैनिको को अस्पताल में भर्ती कराना पडा. मारे गये यूरोपिनो में प्राईवेट विलियम, कलेन पैट्रिक बर्क, जॉन मैक एंड्रीव, प्राईवेट जेम्स रेमन व विलयम अस्थन शामिल थे. इस युद्ध में लेफ्टीनेंट चार्ल्स कैंपबेल डाँट व सार्जेंट डेनिस डाइनन भी मारे गये थे. इन्हें हमारे वीरों ने चतरा बभने के इसी युद्ध में मौत के घाट उतार दिया था. चतरा शहर के पश्चिमी छोर पर कैथोलिक आश्रम के पास एक कब्रगाह है. यह उप विकास आयुक्त निवास के पीछे पकरिया जाने के रास्ते में पडता है. वहां पहले एक गहरा कुंआ था. इसी कुंए में हताहत ब्रिटिश सैनिको को क्रांतिकारियों ने उनके हथियारो के साथ डालकर दफन कर दिया था. युद्ध के बाद उस कुंए को अंग्रेजो ने एक क्ब्रगाह का रूप दे दिया था. आज भी वह कब्रगाह सुरक्षित है. उस पर एक समाधि लेख लिखा हुआ है. अंग्रेजो ने यहां के शहीदों को देशद्रोह की संज्ञा दी और इस क्षेत्र को अपेक्षित रखा. मगर स्वतंत्रता प्राप्ति के 67 वर्ष बाद भी यहां की स्थिति में सुधार नहीं आयी. 1760 से 1834 तक छोटानागपुर का प्रशासनिक मुख्यालय रहने वाला चतरा 1914 से 1991 तक मात्र अनुमंडल रहा. इसके बाद जिला का दर्जा पाकर पुन: आशांवित हैं. किंतु यह अपना खोया हुआ गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त कर सकेगा या नहीं यह सोचनीय हैं. चतरा के गौरवमयी इतिहास पर शोध की जरूरत हैं. इसके लिए पुरातत्व विभाग को उचित कदम उठाने की आवश्यकता है.
 
 
 
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