"धर्म": अवतरणों में अंतर
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Servantratan (वार्ता | योगदान) |
अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
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: ''धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः।
: ''तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत् ॥
:: मरा हुआ धर्म मारने वाले का नाश, और रक्षित धर्म रक्षक की रक्षा करता है। इसलिए धर्म का हनन कभी न करना, इस डर से कि मारा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले।
इसी तरह [[भगवद्गीता]] में कहा है-
: '' यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
: '' अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
:: ([[कृष्ण]] अर्जुन से कहते हैं कि) जब-जब धर्म की ग्लानि (पतन) होता है और अधर्म का उत्थान होता है, तब तब मैं अपना सृजन करता हूँ ([[अवतार]] लेता हूँ)।
== जैन समुदाय ==
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