"भरत मुनि": अवतरणों में अंतर

नाट्यशास्त्र में 36 अध्याय व श्लोक 6000 हैं अतः इसे षट्ससाहस्त्री संहिता भी कहते हैं। आचार्य भरत ने आठ रस माने हैं। शांत को रस नहीं माना है।
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भरतमुनि का नाट्यशास्त्र अपने विषय का आधारभूत ग्रन्थ माना जाता है। कहा गया है कि भरतमुनि रचित प्रथम [[नाटक]] का अभिनय, जिसका कथानक 'देवासुर संग्राम' था, देवों की विजय के बाद [[इन्द्र]] की सभा में हुआ था। आचार्य भरत मुनि ने अपने नाट्यशास्त्र की उत्पत्ति [[ब्रह्मा]] से मानी है क्योकि [[शिव|शंकर]] ने ब्रह्मा को तथा ब्रह्मा ने अन्य ऋषियो को काव्य शास्त्र का उपदेश दिया।
विद्वानों का मत है कि भरतमुनि रचित पूरा नाट्यशास्त्र अब उपलब्ध नहीं है। जिस रूप में वह उपलब्ध है, उसमें लोग काफी क्षेपक बताते हैं।
नाट्यशास्त्र में 36 अध्याय व श्लोक 6000 हैं अतः इसे षट्ससाहस्त्री संहिता भी कहते हैं। आचार्य भरत ने आठ रस माने हैं। शांत को रस नहीं माना है।
 
==इन्हें भी देखें==