"सियाचिन विवाद": अवतरणों में अंतर

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"यहाँ से लेह, लद्दाख और चीन के कुछ हिस्सों पर नज़र रखने में भारत को मदद मिलती है। अगर यह किसी के हिस्से में न हो तो दोनों देशों के लिए कोई नुक़सान नहीं है।"
मनोज जोशी कहते हैं, "चूँकि पाकिस्तान पिछले कुछ वर्षों के दौरान पूरे सियाचिन को अपना हिस्सा बताता रहा है इसलिए इस पर अपनी सेना की वास्तविक स्थिति रिकॉर्ड पर लाने में उसे दिक़्क़त हो सकती है।<small>"[https://www.hvlyrics.com/ हिंदी गाने के बोल पाएं]</small>
 
दूसरी ओर लैफ्टिनेंट जनरल शंकर प्रसाद का कहना है कि इस मुद्दे पर समझौता होना आसान है क्योंकि यहाँ पर सैनिक गतिविधियाँ बंद करना दोनों के ही हित में है।
उनका कहना है, "दोनों देशों में आपसी भरोसे की कमी है, दोनों को डर रहता है कि कोई चौकी छोड़ी तो दूसरा उस पर क़ब्जा कर लेगा, इसलिए आपसी विश्वास बढ़ाना ज़रुरी है, फिर यह मुद्दा जल्दी सुलझने की उम्मीद की जा सकती है।"
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दोनों देश सियाचिन में सैनिक गतिविधियों पर हो रहा भारी ख़र्च बचाना तो चाहते है लेकिन साथ ही चाहते हैं कि उनकी प्रतिष्ठा को भी कोई ठेस न लगे यानी घरेलू मोर्चे पर नाक भी बची रहे।
दोनों देशों के संबंधों में आई नई गरमाहट सियाचिन के बर्फ़ को कितना पिघला पाती है, इसके लिए वक़्त का इंतज़ार करना होगा। <small>"[https://www.hvlyrics.com/ हिंदी गाने के बोल पाएं]</small>
 
==सन्दर्भ==
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== बाहरी कड़ियाँ ==
[https://web.archive.org/web/20050320152606/http://www.bbc.co.uk/hindi/regionalnews/story/2004/08/040805_siachen_talks.shtml बीबीसी - लंबा विवाद है सियाचिन का]