"बूँदी": अवतरणों में अंतर

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== विवरण ==
बूँदी एक पूर्व रियासत थी। इसकी स्थापना सन 1242 ई. में महाराजाराव बूंदा मीणादेवाजी ने की थी। बूँदी पहाड़ियों से घिरा सघन वनाच्छादित सुरम्य नगर है। [[राजस्थान]] का महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थल है।बूंदी परकोटे के चार द्वार है :-चौगान द्वार मीरा द्वार खोजा द्वार लंका द्वार जोकि चारो दिशाओ में खुलते ह । चौगान द्वार पर बनी मोरनी मनमोहक एक सुंदर चित्रण शैली का द्योतक है
 
== इतिहास ==
 
बूँदी की स्थापना महाराजाराव बूंदादेवा मीणाहाड़ा ने 1242 मे किजैता थीमीना को उन्हींहरा कर कि। नगर कि दोनो पहाडियो के मध्य "बून्दी कि नाल" नाम परसे प्रसिद्ध नाल के कारण नगर का नाम "बून्दी" रखा गया। बाद मे इसेइसी 1342नाल मेंका महाराजापानी बूंदारोक मीणाकर केनवलसागर पोतेझील जैताका मीणानिर्माण सेकराया गया। राजा देव सिंह जी ने हत्या लिया राजा देव सिंह के उपरान्त राजा बरसिंह ने पहाडी पर 1354 में तारागढ़ नामक दुर्ग का निर्माण करवाया। साथ ही दुर्ग मे महल और कुण्ड-बावडियो को बनवाया। १४वी से १७वी शताब्दी के बीच तलहटी पर भव्य महल का निर्माण कराया गया। सन् १६२० को राव रतन सिंह जी ने महल मे प्रवेश के लिए भव्य पोल(दरवाज़ा) का निर्माण कराया गया। पोल को दो हाथी कि प्रतिमुर्तियों से सजाया गया उसे "हाथीपोल" कहा जाता है। राजमहल मे अनेक महल साथ ही दिवान- ए - आम और दिवान- ए - खास बनवाये गये। बूँदी अपनी विशिष्ट चित्रकला शैली के लिए विख्यात है, इसे महाराव राजा "श्रीजी" उम्मेद सिंह ने बनवाया जो अपनी चित्रशैली के लिए विश्वविख्यात है। बूँदी के विषयों में शिकार, सवारी, रामलीला, स्नानरत नायिका, विचरण करते हाथी, शेर, हिरण, गगनचारी पक्षी, पेड़ों पर फुदकते शाखामृग आदि रहे हैं।
 
== चित्रकला ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/बूँदी" से प्राप्त