"पाण्ड्य राजवंश": अवतरणों में अंतर

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== परिचय ==
तमिल प्रदेश का इतिहास प्रारंभ से ही मुख्य रूप से तीन राजवंशों का इतिहास रहा है- [[चोल राजवंश|चोल]], [[चेर वंश|चेर]] और, पांड्य। इनमें से पांड्य राजवंश का अधिकार इस प्रदेश के दक्षिणी पूर्वी छोर पर था। उत्तर में पांड्य राज्य पुथुक्कट्टै राज्य तक फैला था; [[वल्लरु नदी]] इसकी उत्तरी सीमा थी। साधारणतया दक्षिणी [[त्रवनकोर|त्रावणकोर]] और वर्तमान तिन्नेवली, मदुरा तथा रम्नाद जिले ही इसमें सम्मिलित थे। पाड्यों की राजधानी का नाम 'मदुरा' उत्तर भारत स्थित [[मथुरा]] के अनुकरण पर था पांडवों के साथ इनके सबंध की परंपरा की ओर संकेत करता है। दक्षिण में आज भी [[महाभारत]] के युद्ध के अवसर पर पांड्यों की स्थिति का निर्देश करती हुई अनुश्रुतियाँ है। एक मान्यता अनुसार माथुरों (मथुरा वासी यादवो (बाद मे एक बड़ा वर्ग कायस्थ जाति मे अन्तर्मुक्त हुवा ) ने पांड्या राज्य की स्थापना की जो की वर्तमान में मदुरै, त्रिनिवेल्ली जैसे क्षेत्रों में फैला था। माथुरों के दूत रोम के ऑगस्टस कैसर के दरबार में भी गए थे।
[[महावंश|महावंस]]' से ज्ञात होता है कि पांड्य राज्य बुद्ध के समय में भी बना रहा; इस ग्रंथ में बुद्ध के परिनिर्वाण के कुछ दिनों बाद लंका के राजकुमार विजय और एक पांड्य राजकुमारी के विवाह का उल्लेख है।