"मदर इण्डिया": अवतरणों में अंतर

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== विकास ==
=== कथा ===
फ़िल्म का शीर्षक अमरीकी लेखिका कैथरीन मायो द्वारा १९२७ में लिखित पुस्तक ''मदर इण्डिया'' से लिया गया है जिसमे उन्होंने भारतीय समाज, धर्म और संस्कृति पर हमला किया था।<ref>मृणालिनी सिन्हा:''Introduction.'' In: सिन्हा (ed.): ''सिलेक्शन फ्रॉम मदर इण्डिया।'' वुमेन्स प्रेस, नई दिल्ली 1998.</ref> पुस्तक में भारतीय स्वतंत्रता की मांग के विरोध में मायो ने भारतीय महिलाओं की दुर्दशा, अछूतों के प्रति भेद-भाव, जानवरों, धुल मिट्टी और राजनेताओं पर हमला किया था। मायो ने पुरे भारत में गुस्से का माहोल उत्पन्न कर दिया और उनकी पुस्तकों को उनके पुतले सहित जलाया गया।<ref>{{cite web |url=http://www.pabook.libraries.psu.edu/palitmap/bios/Mayo__Katherine.html |title=शोर्ट बायो (बाई कैथरीन फ्रिक) |publisher=Pabook.libraries.psu.edu |accessdate=15 जून 2011 |archive-url=https://web.archive.org/web/20110716065640/http://www.pabook.libraries.psu.edu/palitmap/bios/Mayo__Katherine.html |archive-date=16 जुलाई 2011 |url-status=dead }}</ref> [[महात्मा गाँधी]] ने भी पुस्तक का विरोध किया और कहा कि "यह गटर इंस्पेक्टर द्वारा लिखी गई कोई रिपोर्ट है"।<ref>{{cite web |url=http://www.lehigh.edu/~amsp/2006/02/teaching-journal-katherine-mayos.html |title=टीचिंग जर्नल: कैथरीन मायोस मदर इण्डिया (1927) |publisher=Lehigh.edu |date=7 फ़रवरी 2006 |accessdate=15 जून 2011 |archive-url=https://web.archive.org/web/20110607110937/http://www.lehigh.edu/~amsp/2006/02/teaching-journal-katherine-mayos.html |archive-date=7 जून 2011 |url-status=livedead }}</ref> इस पुस्तक के विरोध में पचास से अधिक पुस्तकें और चिट्ठियां प्रकाशित की गई जिसमें मायो की गलतियों और अमरीकी लोगों में भारत के प्रति गलत विचारों के इतिहास को दर्शाया गया।<ref>{{cite book |last=जयवार्देना |first=कुमारी |title=द वाईट वुमंस ऑदर बर्डन्: वेस्टर्ण वुमन ऐन्ड सौथ एशिया ड्युरिंग ब्रिटिश कॉलोनियल रुल |url=http://books.google.com/books?id=vJ9MCPdcGrsC&pg=PA99 |accessdate=23 फ़रवरी 2011 |year=1995 |publisher=रोत्लेज |isbn=978-0-415-91104-7 |page=99 |archive-url=https://web.archive.org/web/20140920221048/http://books.google.com/books?id=vJ9MCPdcGrsC&pg=PA99 |archive-date=20 सितंबर 2014 |url-status=live }}</ref>
 
खान को फ़िल्म और उसके शीर्षक का ख्याल १९५२ में आया। उस वर्ष अक्टूबर में उन्होंने आयात अधिकारीयों के पास फ़िल्म के निर्माण का प्रस्ताव रखा।<ref>चैटर्जी (2002), p.10</ref> १९५५ में भारतीय मंत्रालय के सूचना व प्रौद्योकीकरण विभाग को आगामी फ़िल्म के शीर्षक के बारे में पता किया और उन्होंने महबूब खान को फ़िल्म की कथा भेजने को कहा ताकि उसकी समीक्षा की जा सके। उन्हें इस बात का डर था कि कहीं फ़िल्म भारत के राष्ट्रिय हित को ठेस न पहुंचाए।<ref name="Chatterjee20">चैटर्जी (2002), p.20</ref>