"नक्षत्र": अवतरणों में अंतर
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तारे हमारे सौर जगत् के भीतर नहीं है। ये सूर्य से बहुत दूर हैं और सूर्य की परिक्रमा न करने के कारण स्थिर जान पड़ते हैं—अर्थात् एक तारा दूसरे तारे से जिस ओर और जितनी दूर आज देखा जायगा उसी ओर और उतनी ही दूर पर सदा देखा जायगा। इस प्रकार ऐसे दो चार पास-पास रहनेवाले तारों की परस्पर स्थिति का ध्यान एक बार कर लेने से हम उन सबको दूसरी बार देखने से पहचान सकते हैं। पहचान के लिये यदि हम उन सब तारों के मिलने से जो आकार बने उसे निर्दिष्ट करके समूचे तारकपुंज का कोई नाम रख लें तो और भी सुभीता होगा। नक्षत्रों का विभाग इसीलिये और इसी प्रकार किया गया है।
चंद्रमा २७-२८ दिनों में पृथ्वी के चारों ओर घूम आता है। खगोल में यह भ्रमणपथ इन्हीं तारों के बीच से होकर गया हुआ जान पड़ता है। इसी पथ में पड़नेवाले तारों के अलग अलग दल बाँधकर एक एक तारकपुंज का नाम नक्षत्र रखा गया है। इस रीति से सारा पथ इन २७ नक्षत्रों में विभक्त होकर 'नक्षत्र चक्र' कहलाता है। नीचे तारों की संख्या और आकृति सहित २७ नक्षत्रों के नाम
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| आर्द्रा || १ || उज्वल
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| पुनर्वसु ||
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| पुष्य || १ वा ३ || माणिक्य वर्ण
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| अश्लेषा || ५ || कुत्ते की पूँछ वा कुलावचक्र
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| स्वाती || १ || कुंकुं वर्ण
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| विशाखा ||
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| अनुराधा ||
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| ज्येष्ठा || ३ || सर्प या कुंडल
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| मुल || ९ या ११ || शंख या सिंह की पूँछ
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| पुर्वाषाढा ||
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| उत्तरषाढा ||
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| श्रवण || ३ || बाण या त्रिशूल
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| धनिष्ठा प्रवेश ||
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| शतभिषा || १०० || मंडलाकार
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