"स्वराज": अवतरणों में अंतर

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== स्वराज पर गाँधी के विचार ==
गाँधी के 'स्वराज' की अवधारणा अत्यन्त व्यापक है। स्वराज का अर्थ केवल राजनीतिक स्तर पर विदेशी शासन से स्वाधीनता प्राप्त करना नहीं है, बल्कि इसमें [[सम्स्कृति|सांस्कृतिक]] व नैतिक स्वाधीनता का विचार भी निहित है। यह राष्ट्र निर्माण में परस्पर सहयोग व मेल-मिलाप पर बल देता है। शासन के स्तर पर यह ‘सच्चे लोकतंत्र का पर्याय’ है। गाँधी का स्वराज ‘निर्धन का स्वराज’ है, जो दीन-दुखियों के उद्धार के लिए प्रेरित करता है। यह आत्म-सयंम, ग्राम-राज्य व [[सत्ता का विकेंद्रीकरण|सत्ता के विकेन्द्रीकरण]] पर बल देता है। गाँधी ने ‘[[सर्वोदय]]’ अर्थात् सर्व-कल्याण का समर्थन किया। अहिसांत्मक समाजःगाँधी की दृष्टि में आदर्श समाज-व्यवस्था वही हो सकती है, जो पूर्णतः ]]अहिंसा]]त्मकअहिंसात्मक हो। जहाँ हिंसा का विचार ही लुप्त हो जाएगा, वहाँ ‘[[दण्ड]]’ या ‘बल-प्रयोग’ की कोई आवश्यकता नहीं रहेगी अर्थात् आदर्श समाज में राजनीतिक शक्ति या राज्य की कोई आवश्यकता नहीं होगी। गाँधी हिंसा तथा [[शोषण]] पर आधारित वर्तमान राजनीतिक ढाँचे को समाप्त करके, उसके स्थान पर एक ऐसी व्यवस्था स्थापित करना चाहते थे, जो व्यक्ति की सहमति पर आधारित हो तथा जिसका उद्देश्य अहिंसात्मक तरीकों से जन-कल्याण में योगदान देना हो।
 
=== राज्य-विहीन समाज ===
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गाँधी के अनुसार राजनीतिक शक्ति साध्य नहीं बल्कि प्रत्येक क्षेत्र में लोगों के विकास में सहयोग देने का साधन है। यह राष्ट्रीय प्रतिनिधियों द्वारा राष्ट्रीय जीवन का नियमन करती है। यदि राष्ट्रीय जीवन इतना परिपूर्ण हो जाए कि आत्मनियमित हो जाऐं तो किसी भी प्रतिनिधि की आवश्यकता नहीं है। ऐसी स्थिति में प्रत्येक अपना शासक स्वयं है। वह स्वयं पर इस प्रकार शासन करता है, कि वह अपने पड़ोसी के लिए बाधा नहीं बनता। ऐसी आदर्श स्थिति में राजनीतिक शक्ति नहीं होती, क्योंकि उसमें कोई राज्य नहीं होता। गाँधी ने उसे ‘‘प्रबुद्ध अराजकता की स्थिति’’ कहा है। यही ‘[[रामराज्य|राम राज्य]]’ है। [[लेव तोलस्तोय|टॉलस्टॉय]] ने इसे ‘‘पृथ्वी पर परमेश्वर का राज्य’’ कहा है।
 
=== ग्राम : गणराज्यों का संघ ===
गाँधी का राज्याविहीन, वर्गविहीन समाज अनेक स्व-शासित तथा आत्मनिर्भर ग्राम-समुदायों में विभक्त होगा। प्रत्येक ग्राम-समुदाय का प्रशासन पाँच व्यक्तियों की [[पंचायत]] चलाएगी, जो ग्रामवासियों द्वारा निर्वाचित होगी। ग्राम पंचायतों को विधायी, कार्यकारी तथा न्यायिक शक्तियाँ प्राप्त होंगी। ग्राम पंचायतों के ऊपर मंडलों की, उनके ऊपर जिलों की तथा जिलों के ऊपर प्रान्तों की पंचायते होंगी। सबसे ऊपर सारे राष्ट्र के लिए केन्द्रीय (संघीय) पंचायत होगी। प्रत्येक गाँव अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति तथा सुरक्षा की दृष्टि से स्वावलम्बी होगा। सैनिक-शक्ति व पुलिस नहीं होगी। बड़े नगर, कानूनी अदालतें, कारागार तथा भारी उद्योग नहीं होंगे। सत्ता का विकेन्द्रीकरण होगा। प्रत्येक गाँव स्वयंसेवी रूप से संघ से सम्बद्ध होगा। गांधी ने इसे ‘वास्तविक स्वराज्य’ कहा है।