"हिन्दी मेला": अवतरणों में अंतर

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'''हिन्दी मेला''' [[कोलकाता]] की साहित्यिक संस्था [[सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन]] द्वारा आयोजित एक वार्षिक हिन्दी साहित्योत्सव है,जो [[कोलकाता]] में आयोजित किया जाता है। 26 दिसम्बर 2018 से 1 जनवरी 2019 के बीच 7 दिवसीय ‘२४वें हिंदी मेला’ का आयोजन किया गया था। विगत 24 वर्षों से सफलतापूर्वक हिंदी मेले का आयोजन किया जा रहा है।
हिंदी मेला कोलकाता का गर्व और हिंदी संसार की एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। इसने 25 साल का लंबा सफर तय किया है,जो युवाओं के सांस्कृतिक जागरण का चिह्न है। आइए,हम देखते हैं,इस सफर के बहुत से पड़ावों को,बहुत सी स्मृतियों और नौजवानों के हिंदी प्रेम के सांस्कृतिक इतिहास को। 1993 में हिंदी त्यिक पत्रिका 'समकालीन सृजन' और एक नवनिर्मित संस्था 'राजश्री स्मृति-न्यास' के संयुक्त प्रयास से हुआ था।
 
'समकालीन सृजन' की ओर से उस समय कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. शंभुनाथ ने साहित्य से प्रेम रखने वाले एक व्यक्ति जगदीश प्रसाद साहा के सामने यह प्रस्ताव रखा कि विश्वविद्यालय, कॉलेज तथा विद्यालयों के विद्यार्थियों-नौजवानों के बीच साहित्य को लोकप्रिय बनाने के लिए एक साहित्यिक मेला की आवश्यकता है।
हिन्दी मेला [[भारत की संस्कृति|भारतीय संस्कृति]] की एक टूट रही कड़ी को बचाने का प्रयास है। यह अपसंस्कृति के विरूद्ध एक आन्दोलन है। इस बहुदिवसीय मेले में लघु नाटक, कविता, वाद-विवाद प्रतियोगिता, आशु भाषण, राष्ट्रीय संगोष्ठी, चित्रकला प्रतियोगिता, कविता पोस्टर, हिंदी ज्ञान प्रतियोगिता, काव्य संगीत, लोक गीत, भाव नृत्य आदि को शामिल किया जाता है।
फलस्वरूप फरवरी 1993 में महाजाति सदन के एनेक्सी सभागार में 'कलकत्ता साहित्य प्रतियोगिता' के रूप में हिंदी मेला की शुरुआत हुई। इसकी विभिन्न प्रतियोगिताओं में विद्यार्थियों को नगद राशि और उपहार स्वरूप घड़ी देकर प्रोत्साहित किया गया। 1994 में मेला न हो सका था।
1994-95 में हिंदी मेला में लगभग 50 शिक्षण संस्थानों के सैकड़ों विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया। यह आयोजन काफी लोकप्रिय हो गया। इस साल काव्य आवृत्ति, काव्य संगीत, काव्य लेखन, गद्य लेखन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस साल काव्य आवृति का प्रथम पुरस्कार रिंकू घोष को, द्वितीय पुरस्कार काजल किरण सिंह को तथा विवेकलाल, प्रणव मेहरा और सुमित मिश्र को विशेष पुरस्कार तथा वीणा मिश्र,ललित कुमार झा,गीता दूबे, विनीता लाल,रचना झा,रितेश श्यामसुखा और सनातन राय को प्रोत्साहन पुरस्कार मिला। इनमें से कई अब प्रतिष्ठित जगहों पर है।
हिंदी मेला के संस्थापक सदस्यों में मानिक बच्छावत प्रमुख रहे हैं। वे 2017 तक हिंदी मेला में लगातार आ रहे थे और उन्होंने अपना दफ्तर सौंप दिया था। अभी भी वे अस्वस्थ रहते हुए खोज-खबर लेते हैं।
उल्लेखनीय है कि हिंदी मेला का आयोजन मुख्यतः आपसी आर्थिक सहयोग से होता है। मनुष्य के बाहर और भीतर जो जड़ता है, उससे यह एक लड़ाई है। कोलकाता और इसके आसपास के जिलों में इसकी खूब चर्चा हुई तो हिंदी मेला में शिक्षण संस्थानों और हिंदी प्रेमियों का सहयोग बढ़ता गया। फिर एक सिलसिला बन गया हिंदी मेले का और इसका विस्तार तीन दिनों की जगह सात दिनों का हो गया। इसका मुख्य नारा बना- 'पढ़ना-लड़ना है'।
2000 से हिंदी मेला का काफी विस्तार हुआ। साहित्यिक जगत के कई दिग्गज इससे जुड़े। इस घटना का देश के दूसरे हिस्सों में भी काफी प्रचार हुआ। इसमें बाहर से भी साहित्यकार आने लगे। कोलकाता के लेखक,शिक्षक और साहित्य प्रेमी तो जुड़े ही हुए थे।
 
==सन्दर्भ==