"प्रेम नारायण शुक्ल": अवतरणों में अंतर

पंक्ति 8:
==जीवन परिचय==
प्रेम नारायण शुक्ल का जन्म [[कानपुर]] जिले की घाटमपुर तहसील के अंतर्गत ओरिया ग्राम में 2 अगस्त, 1914 को हुआ था। जब वे पांच वर्ष के थे तब उनकी माता का निधन हो गया था, पिता श्री नन्द किशोर शुक्ल, वैद्य थे। प्रारंभिक जीवन बहुत अभावों में बीता, पर कभी हार नहीं मानी, संघर्ष करते हुए जीवन में निरंतर अग्रसर रहे । उनकी सम्पूर्ण शिक्षा-दीक्षा कानपुर में ही हुई। वे डी॰ ए॰ वी॰ कॉलेज , कानपुर के मेधावी छात्रों में से थे। 1941 में आगरा विश्वविद्यालय से एम. ए.(हिंदी साहित्य) की परीक्षा में प्रथम श्रेणी में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त हुआ था (उस समय कानपुर के अधिकतर कॉलेज आगरा विश्वविद्यालय के अंतर्गत आते थे)। अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन की 'साहित्यरत्न' परीक्षा में भी प्रथम श्रेणी में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त हुआ। 1952 में उनको [[आगरा विश्वविद्यालय]] (वर्तमान में डॉ भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा के नाम से जानी जाती है) नेने ' हिंदी साहित्य में विविध वाद' <ref>केशव के काव्य का शैलीवैज्ञानिकअध्ययन/ प्रणव शर्मा (2009), दिल्ली: वाणी प्रकाशन पृष्ठ 112, 117 </ref> शीर्षक प्रबंध पर पी-एच॰ डी॰ तथा 1965 में ' संत साहित्य (भाषा परक अध्ययन)' पर डी॰ लिट्॰ की उपाधियाँ प्रदान कीं। इन दोनों ही ग्रंथों को उत्तर प्रदेश सरकार ने सम्मानित किया <ref> आधुनिक गद्य संग्रह (1979) प्रयाग: हिंदी साहित्य सम्मेलन पृष्ठ 156, [https://archive.org/stream/in.ernet.dli.2015.442323#page/n137/mode/2up]</ref>
 
[[गणेश शंकर विद्यार्थी]] द्वारा चलाये गए अखबार '[[प्रताप]]' से उन्होंने ने अपने जीवन की शुरुआत एक लेखक के रूप में कीl 1943 से उन्होंने डी॰ ए॰वी॰ डिग्री कॉलेज कानपुर में हिंदी विभाग में व्याख्याता के रूप में कार्य प्रारम्भ किया और 1962 से 1977 तक वहीं पर विभागाध्यक्ष के पद पर रहे। अवकाश ग्रहण करने के पश्चात् 1982 तक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के विशिष्ट प्रोफेसर के मानक पद पर रहेl<ref>' डॉ प्रेम नारायण शुक्ल नहीं रहे', स्वतंत्र भारत. (समाचार पत्र), कानपुर, रविवार , 13 जनवरी, 1991 पृष्ठ 1</ref> अध्यापन के समय संत साहित्य, साहित्यालोचन, उनके प्रिय विषय थे। अनेक छात्रों ने अपने शोध ग्रन्थ उनके निर्देशन में पूरे किये। वे निरन्तर [[अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग]] से जुड़े रहे और लगभग तीन दशक तक साहित्य-मंत्री के पद पर कार्य कियाl
 
अक्टूबर सन 1940 में आचार्य [[रामचंद्र शुक्ल]] का 15-20 दिन के लिए कानपुर आना हुआ था, उस समय प्रेम नारायण जी की मुलाकात उनसे कई बार हुई और अनेक साहित्यिक चर्चाएं भी, परन्तु ये भेट प्रथम और अन्तिंम बन कर रह गयी। उसके बाद ही रामचंद्र जी की मृत्यु हो गयी। उनकी पुण्य स्मृति में प्रेम नारायण जी एवं श्रीनारायण जी ने कानपुर में 'साधना-सदन' संस्था की स्थापना के द्वारा हिंदी साहित्य की मौलिक और ठोस सेवा का बीड़ा उठाया। सूरदास पर आलोचनात्मक सामग्री के अभाव को पूरा करने के लिए 'सूर सौरभ' नामक पुस्तक संस्था का प्रथम प्रयास था। <ref> [https://web.archive.org/web/20200611123806/https://epustakalay.com/book/38879-sur-sourabh-by-premnarayan-sukla/ सूर सौरभ निवेदन] </ref> कालांतर में अनेक साहित्यिक अनुष्ठान पूर्ण हुए। उसी की एक प्रस्तुति आचार्य रामचंद्र जी शुक्ल जन्मशती विशेषांक के रूप में साहित्य जगत के सामने आयी, जिसका संपादन प्रेमनारायण जी ने साहित्य सम्मलेन के अपने कार्यकाल में किया। उन्होंने हिंदी साहित्य के विकास के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण साहित्यकारों पर सम्मलेन पत्रिका के स्मृति विशेषांक, जन्मशती विशेषांक सम्पादित किये। उनके संपादन में 'कुछ दिवंगत साहित्यकारों के पत्र' शीर्षक ग्रन्थ का प्रकाशन किया गया था, जो कालांतर में पुस्तक के रूप में भी प्रकाशित हुई। <ref> बच्चन पत्रों के दर्पण में / [सम्पादक,] रामनिरंजन परिमलेन्दु (2009) दिल्ली :वाणी प्रकाशन, पृष्ठ 8-9 [https://books.google.co.in/books?id=1efs6eaGoJMC&pg=PA8&lpg=PA8&dq=%E0%A4%A1%E0%A5%89+%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%AE+%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3+%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B2&source=bl&ots=g9A1cZCCyi&sig=ACfU3U1ndkQ77r3WqreFub_cjZL4HcXpMw&hl=en&sa=X&ved=2ahUKEwiFo9OOvLXrAhVIzzgGHbBpBXo4KBDoATAHegQICRAB#v=onepage&q=%E0%A4%A1%E0%A5%89%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%AE%20%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3%20%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B2&f=false] </ref> कतिपय अन्य महत्त्वपूर्ण विशेषांकों ने भी पुस्तक का रूप लिया।
 
3 दिसंबर 1977 को कानपुर में आचार्य मुंशीराम शर्मा जी 'सोम' का उनके ७५ वर्ष पूरे होने पर भव्य अभिनन्दन किया गया था जिसमें दिग्गज के साहित्यकारों जैसे श्रीमती [[महादेवी वर्मा]], डॉ [[रामकुमार वर्मा]], [[आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी]], आचार्य [[किशोरीदास बाजपेई]], डॉ [[भगीरथ मिश्र]], डॉ [[विजयेन्द्र स्नातक]], पंडित लक्ष्मी शंकर मिश्र 'निशंक', आचार्य सीताराम चतुर्वेदी, आचार्य श्री नारायण चतुर्वेदी, डॉ वागीश दत्त पाण्डेय आदि ने भाग लिया था। उसके बाद कानपुर को ऐसे साहित्यिक विद्वतजनों का समागम वर्षों तक देखने को नहीं मिला। इस अवसर पर 'साधना और सर्जना' अभिनन्द ग्रन्थ भेंट किया गया, जिसका सम्पादन प्रेमनारायण शुक्ल तथा वाल्मीकि त्रिपाठी ने किया था।।<ref>आचार्य मुंशीराम शर्मा" सोम" का साहित्य: संवेदना और शिल्प / रानी अग्रवाल पृष्ठ १७-१८ [http://hdl.handle.net/10603/12205]</ref>
 
12 जनवरी,1991 को वे पंचतत्व में विलीन हुएl ठीक एक वर्ष पूर्व 12 जनवरी, 1990 को इसी दिन उनके गुरु डॉ मुंशीराम शर्मा "सोम" - वेद मनीषी, का भी निधन हुआ था, उनकी प्रथम पुण्य तिथि को स्मरण पर्व के रूप में मनाना चाहते थे और उसी के लिए प्रयत्नशील भी थेl दो दिन पूर्व ही (10 जनवरी) हृदय में दर्द उठा, अस्पताल में भर्ती किया गया, सारा समय उनका ध्यान अपने गुरु की पुण्य तिथि को सफल बनाने पर था और अस्पताल में भी उसी के लिए प्रयत्नशील थेl जीवन पर्यन्त गुरु का आशीर्वाद ले साहित्य साधना में लीन रहने वाले शिष्य शुक्ल जी का भी महाप्रयाण उसी दिन हुआl गुरु-शिष्य परम्परा का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत हुआ l <ref>'गुरु की पुण्यतिथि पर शिष्य की आत्मांजलि' , आज (समाचार पत्र) , कानपुर, 13 जनवरी 1991 पृष्ठ 2 </ref>