"प्रेम नारायण शुक्ल": अवतरणों में अंतर

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अक्टूबर सन 1940 में आचार्य [[रामचंद्र शुक्ल]] का 15-20 दिन के लिए कानपुर आना हुआ था, उस समय प्रेम नारायण जी की मुलाकात उनसे कई बार हुई और अनेक साहित्यिक चर्चाएं भी, परन्तु ये भेट प्रथम और अन्तिंम बन कर रह गयी। उसके बाद ही रामचंद्र जी की मृत्यु हो गयी। उनकी पुण्य स्मृति में प्रेम नारायण जी एवं श्रीनारायण जी ने कानपुर में 'साधना-सदन' संस्था की स्थापना के द्वारा हिंदी साहित्य की मौलिक और ठोस सेवा का बीड़ा उठाया। सूरदास पर आलोचनात्मक सामग्री के अभाव को पूरा करने के लिए 'सूर सौरभ' नामक पुस्तक संस्था का प्रथम प्रयास था। <ref> [https://web.archive.org/web/20200611123806/https://epustakalay.com/book/38879-sur-sourabh-by-premnarayan-sukla/ सूर सौरभ निवेदन] </ref> कालांतर में अनेक साहित्यिक अनुष्ठान पूर्ण हुए। उसी की एक प्रस्तुति आचार्य रामचंद्र जी शुक्ल जन्मशती विशेषांक के रूप में साहित्य जगत के सामने आयी, जिसका संपादन प्रेमनारायण जी ने साहित्य सम्मलेन के अपने कार्यकाल में किया। उन्होंने हिंदी साहित्य के विकास के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण साहित्यकारों पर सम्मलेन पत्रिका के स्मृति विशेषांक, जन्मशती विशेषांक सम्पादित किये। उनके संपादन में 'कुछ दिवंगत साहित्यकारों के पत्र' शीर्षक ग्रन्थ का प्रकाशन किया गया था, जो कालांतर में पुस्तक के रूप में भी प्रकाशित हुई। <ref> बच्चन पत्रों के दर्पण में / [सम्पादक,] रामनिरंजन परिमलेन्दु (2009) दिल्ली :वाणी प्रकाशन, पृष्ठ 8-9 [https://books.google.co.in/books?id=1efs6eaGoJMC&pg=PA8&lpg=PA8&dq=%E0%A4%A1%E0%A5%89+%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%AE+%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3+%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B2&source=bl&ots=g9A1cZCCyi&sig=ACfU3U1ndkQ77r3WqreFub_cjZL4HcXpMw&hl=en&sa=X&ved=2ahUKEwiFo9OOvLXrAhVIzzgGHbBpBXo4KBDoATAHegQICRAB#v=onepage&q=%E0%A4%A1%E0%A5%89%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%AE%20%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3%20%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B2&f=false] </ref> कतिपय अन्य महत्त्वपूर्ण विशेषांकों ने भी पुस्तक का रूप लिया।
 
3 दिसंबर 1977 को कानपुर में आचार्य मुंशीराम शर्मा जी 'सोम' का उनके ७५ वर्ष पूरे होने पर भव्य अभिनन्दन किया गया था जिसमें दिग्गज के साहित्यकारों जैसे श्रीमती [[महादेवी वर्मा]], डॉ [[रामकुमार वर्मा]], [[आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी]], आचार्य [[किशोरीदास बाजपेई]], डॉ [[भगीरथ मिश्र]], डॉ [[विजयेन्द्र स्नातक]], पंडित लक्ष्मी शंकर मिश्र 'निशंक', आचार्य सीताराम चतुर्वेदी, आचार्य श्री नारायण चतुर्वेदी, डॉ वागीश दत्त पाण्डेय आदि ने भाग लिया था। उसके बाद कानपुर को ऐसे साहित्यिक विद्वतजनों का समागम वर्षों तक देखने को नहीं मिला। इस अवसर पर 'साधना और सर्जना' अभिनन्द ग्रन्थ भेंट किया गया, जिसका सम्पादन प्रेमनारायण शुक्ल तथा वाल्मीकि त्रिपाठी ने किया था।।<ref>आचार्य मुंशीराम शर्मा" सोम" का साहित्य: संवेदना और शिल्प / रानी अग्रवाल पृष्ठ १७-१८ [https://archive.org/stream/in.ernet.dli.2015.268943] </ref>
 
12 जनवरी,1991 को वे पंचतत्व में विलीन हुएl ठीक एक वर्ष पूर्व 12 जनवरी, 1990 को इसी दिन उनके गुरु डॉ मुंशीराम शर्मा "सोम" - वेद मनीषी, का भी निधन हुआ था, उनकी प्रथम पुण्य तिथि को स्मरण पर्व के रूप में मनाना चाहते थे और उसी के लिए प्रयत्नशील भी थेl दो दिन पूर्व ही (10 जनवरी) हृदय में दर्द उठा, अस्पताल में भर्ती किया गया, सारा समय उनका ध्यान अपने गुरु की पुण्य तिथि को सफल बनाने पर था और अस्पताल में भी उसी के लिए प्रयत्नशील थेl जीवन पर्यन्त गुरु का आशीर्वाद ले साहित्य साधना में लीन रहने वाले शिष्य शुक्ल जी का भी महाप्रयाण उसी दिन हुआl गुरु-शिष्य परम्परा का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत हुआ l <ref>'गुरु की पुण्यतिथि पर शिष्य की आत्मांजलि' , आज (समाचार पत्र) , कानपुर, 13 जनवरी 1991 पृष्ठ 2 </ref>