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:[[सदस्य:AGMDHEERAJ]] जी, आप खुद के बारे में कैसे लिख सकते है? क्या यह सही होगा? यदि ऐसा किया जाने लगा तो आप जैसे व हमारे जैसे कितने है जो ए कार्य करने लगेंगे । आप यहा केवल अपनी आत्मकथा लिखने आये है? [[सदस्य:Arun singh Yaduvanshi|N8]] ([[सदस्य वार्ता:Arun singh Yaduvanshi|वार्ता]]) 19:25, 20 जुलाई 2020 (UTC)
 
== भट्ट ब्राह्मण वृतान्तस्य ==
 
भट्ट
 
धन्वन्तरि क्षपणकामरसिंहशंकु
वेतालभट्ट घटखर्पर कालिदास: ।
ख्यातो वराहमिहिरो नृपते:सभायां
रत्नानि वै वररूचिर्नवविक्रमस्य ।‌।
राजा विक्रमादित्य के समय में सभी ब्राह्मण भट्ट से ही संबोधित हुआ करते थे चाहे वह बाणभट्ट हो या मयूर भट्ट मम्मट भट्ट आचार्य कैय्यट रुद्रट मम्मट भामह परम वैयाकरणी भट्टोजि दीक्षित रंगोजि भट्ट नागेश भट्ट नारायण भट्ट आदि आदि वीरगाथा काल तक सभी ब्राह्मणों की उपाधि भट्ट ही पाया जाता है वीरगाथा काल के बाद रीतिकाल में तुलसीदास अन्य ब्राह्मणों की आविर्भाव हुआ यदि कोई संस्कृत का आदि प्रणेता लौकिक संस्कृत को प्रथम गद्य स्वरूप देने वाले बाणभट्ट ही थे बात कुछ पहले कि है संपूर्ण भारतवर्ष बौद्ध धर्मावलंबी हो गया था उस समय आदि गुरु शंकराचार्य की बात मानकर कुमारिल भट्ट ने बौद्ध दीक्षा लेकर बौद्ध मधु का खंडन किया है और जो सनातन धर्म अनुयाई बौद्ध हुए थे वह अपने कुमारिल भट्ट के अनुयाई होने के कारण भाट कहलाए अगर इस मत को देखा जाए तो संपूर्ण भारतवर्ष भाट ही है क्योंकि कुमारिल भट्ट के शिष्यों को भाट कहा जाता था और सुगम पवित्र भट्ट ब्राह्मणों को तिरस्कृत करने का एक वामपंथियों का षड्यंत्र है धन्यवाद कृपया शास्त्र को उपेक्षित करने से पूर्व शास्त्र का अवलोकन अवश्य करें चाहे वह सोशल मीडिया हो या वास्तविक जीवन जब तक शास्त्र कोई यथार्थ स्वरूप को ना जाने तब तक किसी भी मत को सार्वजनिक करने से बचें इससे हमारे संस्कृति का पतन हो सकता है जयतु संस्कृतम् जय भारत भट्ट- ब्राह्मणों का एक समुदाय है। यह समुदाय कश्मीर, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, गुजरात, महाराष्ट्र आदि में बहुतायत मे पाये जाते हैं।
 
अपने विलक्षण प्रतिभा से पूरे विश्व को संस्कृत नाटक तथा मनोरंजन जगत में एक नया योगदान देने वाले बाणभट्ट तथा उनके पूर्वर्ती और उत्तरावर्ती महा कवियों का योगदान जैसे बाणभट्ट हर्ष चरित्र कादंबरी जैसा शुगम साहित्य भवभूति भास सुबंधु दंडी श्रीहर्ष माघ भामह भारवि नागेश रूद्रट कैय्यट मम्मट लोल्लट भट्टोजिदिक्षीत आदि ये सब संस्कृत जगत के अमूल्य निधि है यह सभी संस्कृत को एक नई दिशा की तरफ लेकर चलेंगे जो वैदिक से अलौकिक के तरफ पथ प्रदर्शित करता था उस जटिल संस्कृत को सुगम् समझने योग्य बना दिया
 
प्रौढ मनोरमा के अनुसार भट्टोजि दीक्षित आंध्रा के निवासी थे वह तैलड्ग ब्राह्मण थे पिता का नाम श्री लक्ष्मी धर भट्ट था अनुज रंगोजि भट्ट और पुत्र भानुजि चित्र संयास आश्रम का नाम रामाश्रम था इनके भतीजा कौण्डभट्ट और पौत्र हरि दीक्षित इन सभी विद्वानों ने व्याकरण शास्त्र के विकास में अविस्मरणीय योगदान दिया है
 
लघुशब्देन्दुशेखर नव्य व्याकरण के अग्रगण्य विद्वान नागेश भट्ट् जिनका जन्म 17 वी सदी के उत्तरार्द्ध में हुआ इनके पिता का नाम शिव भट्ट माता का नाम सती देवी था ये माता पिता में अपार श्रद्धा रखते थे इनकी कोई संतान नहीं थी चित्र ऋण से मुक्ति के लिए लघुशब्देन्दुशेखर तथा मंजूषा नामक 2 पुस्तक लिखे अपना पुत्र तथा पुत्री मानकर शिव पार्वती के समक्ष उपस्थित कीए यह श्रृंगवेरपुर के राजा राम सिंह वर्मा के आश्रय में थे {{सही}}== == अचार्य सत्सनातन[[सदस्य:आचार्य सत्सनातन|आचार्य सत्सनातन]] ([[सदस्य वार्ता:आचार्य सत्सनातन|वार्ता]]) 04:51, 28 अगस्त 2020 (UTC)
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