"चौरी चौरा कांड": अवतरणों में अंतर

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[[चौरी चौरा]], [[उत्तर प्रदेश]] में [[गोरखपुर]] के पास का एक कस्बा है जहाँ 5 फ़रवरी 1922 को भारतीयों ने ब्रिटिश सरकार की एक पुलिस चौकी को आग लगा दी थी जिससे उसमें छुपे हुए 22 पुलिस कर्मचारी जिन्दा जल के मर गए थे। इस घटना को '''चौरीचौरा काण्ड''' के नाम से जाना जाता है। इसके परिणामस्वरूप [[महात्मा गांधी|गांधीजी]] ने कहा था कि हिंसा होने के कारण [[असहयोग आन्दोलन]] उपयुक्त नहीं रह गया है और उसे वापस ले लिया था।<ref name="Vyas">{{cite book|author=Rajshekhar Vyas|title=Meri Kahani Bhagat Singh: Indian Freedom Fighter|url=http://books.google.com/books?id=uVhpBgAAQBAJ&pg=PA33|publisher=Neelkanth Prakashan|pages=33–|id=GGKEY:JE4WZ574KU2}}</ref> चौरी-चौरा कांड के अभियुक्तों का मुक़दमा पंडित मदन मोहन मालवीय ने लड़ा और उन्हें बचा ले जाना उनकी एक बड़ी सफलता थी।<ref name="'Mann'">{{cite book|author=Manju 'Mann'|title=Mahamana Pt Madan Mohan Malviya|url=http://books.google.com/books?id=NmVqCwAAQBAJ&pg=PA124|isbn=978-93-5186-013-6|pages=124–}}</ref>
 
== [https://www.youtube.com/watch?v=Vtrvenyel8k&t=63s परिणाम] ==
इस घटना के तुरन्त बाद गांधीजी ने असहयोग आन्दोलन को समाप्त करने की घोषणा कर दी। बहुत से लोगों को गांधीजी का यह निर्णय उचित नहीं लगा।<ref name="Vyas" /> विशेषकर क्रांतिकारियों ने इसका प्रत्यक्ष या परोक्ष विरोध किया। <ref name="Vyas" /> 1922 की [[गया|गया कांग्रेस]] में [[प्रेमकृष्ण खन्ना]] व उनके साथियों ने [[राम प्रसाद 'बिस्मिल'|रामप्रसाद बिस्मिल]] के साथ कन्धे से कन्धा भिड़ाकर गांधीजी का विरोध किया।