"मन्त्र": अवतरणों में अंतर

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हिन्दू [[श्रुति]] ग्रंथों की पारंपरिक रूप मंत्र कहा जाता है। इसका शाब्दिक अर्थ ''विचार'' या ''चिन्तन'' होता है <ref>संस्कृत में '''मननेन त्रायते इति मन्त्रः''' - जो मनन करने पर त्राण दे वह '''मन्त्र''' है</ref>। ''मंत्रणा'', और ''मंत्री'' इसी मूल से बने शब्द हैं। मन्त्र भी एक प्रकार की वाणी है, परन्तु साधारण वाक्यों के समान वे हमको बन्धन में नहीं डालते, बल्कि बन्धन से मुक्त करते हैं।<ref>श्रीमद्भगवदगीता - टीका श्री भूपेन्द्रनाथ सान्याल, प्रथम खण्ड, अध्याय 1, श्लोक 1</ref>
 
काफी '"चिन्तन-मनन'" के बाद किसी समस्या के समाधान के लिये जो उपाय/विधि/युक्ति निकलती है उसे भी सामान्य तौर पर '''मंत्र'''<ref>{{Cite web|url=https://jaibhole.co.in/articles/Beej-Mantras-Of-All-Planets|title=सभी ग्रहो के बीज़ मंत्र जो बदलसकतेहैंआपकाजीवनबदल सकते हैं आपका जीवन|website=Jai Bhole}}</ref> कह देते हैं। "षड कर्णो भिद्यते मंत्र" (छ: कानों में जाने से मंत्र नाकाम हो जाता है) - इसमें भी मंत्र का यही अर्थ है।
 
== आध्यात्मिक ==