"स्वस्तिक मन्त्र": अवतरणों में अंतर

क्योंकि यह था नहीं अभी भी है।
क्योंकि वह था नहीं बल्कि है।
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[[चित्र:Hinduswastika.jpg|thumb|350px| हिन्दू धर्म का प्रतिक यह चिन्ह हैं और कई पीढ़ियों से इस्तेमाल में हैं। ]]
 
'''स्वस्तिक मंत्र''' या '''स्वस्ति मन्त्र''' शुभ और शांति के लिए प्रयुक्त होता है। ''स्वस्ति = सु + अस्ति = कल्याण हो''। ऐसा माना जाता है कि इससे हृदय और मन मिल जाते हैं। मंत्रोच्चार करते हुए दर्भ से जल के छींटे डाले जाते थेहैं तथा यह माना जाता है कि यह जल पारस्परिक क्रोध और वैमनस्य को शांत कर रहा है। स्वस्ति मन्त्र का पाठ करने की क्रिया 'स्वस्तिवाचन' कहलाती है।
 
: ''ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।''